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________________ २२२ | जैन कथामाला (राम-कथा) -लक्ष्मण ! कीड़े के समान इस ब्राह्मण पर क्या क्रोध करना ? इसे छोड़ दो। अग्रज की आज्ञा शिरोधार्य करके लक्ष्मण ने धीमे से ब्राह्मण को जमीन पर रख दिया। तीनों उस ब्राह्मण के घर से बाहर निकले और आगे चल दिये । चलते-चलते एक घने वन में आ पहुंचे। वर्षा ऋतु का आगमन भी हो चुका था । एक वट वृक्ष के नीचे बैठकर श्रीराम अनुज लक्ष्मण से वोले -भाई ! इस वृक्ष के नीचे ही वर्षाकाल विताया जाय । अनुज को क्या ऐतराज था? जो राम की इच्छा वही लक्ष्मण की। रही सीता वह तो पति की अनुगामिनी थी ही। वृक्ष के नीचे वर्षावास का निश्चय हो गया। ___तीनों के इस निर्णय से वृक्ष पर रहने वाला ईभकर्ण यक्ष भयभीत हो गया। साधारण पथिक होते तो वह अपना बल भी प्रदर्शित करता किन्तु उनकी तेजस्विता और सदाचरण के समक्ष वह स्वयं को तुच्छ समझने लगा। __ भयाक्रान्त होकर अपने स्वामी गोकर्ण यक्ष के पास पहुंचा और कहने लगा__ -हे स्वामी ! मेरे निवास स्थान वटवृक्ष के नीचे दुःसह तेज वाले व्यक्तियों ने वर्षावास का निश्चय किया है । प्रभु ! मेरा निवास स्थान छिन जायगा। मेरी रक्षा कीजिए। विचक्षण गोकर्ण ने अवविज्ञान से उपयोग लगाया तो चमत्कृत होकर बोला --मूर्ख ! मैं तेरी क्या रक्षा करूँ ? तेरे निवास पर तो स्वयं
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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