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________________ राम वन-गमन |, १६९ राजा दशरथ को क्या आपत्ति थी ? . उनके लिए जैसे राम वैसे भरत दोनों ही समान रूप से प्रिय । केवल छोटे-बड़े का प्रश्न था । लोक परम्परा ही वाधक थी। लेकिन वचनबद्ध राजा ने भरत का राजतिलक स्वीकार कर लिया। जैसे ही यह वात भरत को ज्ञात हुई तो वे दृढ़तापूर्वक विरोध करने लगे। उन्होंने स्पष्ट कह दियाअग्रज राम के रहते हुए मैं राज्यसिंहासन पर कदापि नहीं बैलूंगा। । समस्या टेढ़ी हो गई। दशरथ की प्रव्रज्या में विघ्न आ पड़ा। उनकी इच्छा तो राज्य का भार राम को सौंपने की थी किन्तु कैकेयी को दिये हुए वचन के कारण भरत के राज्यतिलक बात आई। यहाँ तक भी ठीक था । दशरथ को चारों पुत्र ही समान प्रिय थे। राम न सही भरत सही-किसी को भी राज्य-भार देकर उन्हें प्रवजित होना था किन्तु विघ्न पड गया भरत के निर्णय से । वह किसी भी दशा में राज्य सिंहासन पर बैठना ही नहीं चाहते थे। उनकी बात ठीक भी थी-अग्रज के होते हुए अनुज का सिंहासन पर बैठना आर्य संस्कृति में अच्छा नहीं माना जाता। . १ (क) वाल्मीकि रामायण में राजा दशरथ के दीक्षा लेने का प्रसंग नहीं है। उसमें प्रसंग है राम को युवराज पद देने का । भरत उस समय मामा के यहाँ गये हुए थे। दासी मंथरा (कुन्जा) ने रानी कैकेयी को भड़काया और कैकेयी ने अपने दोनों वरों के फलस्वरूप भरत को राज्यतिलक और राम को चौदह वर्ष का वनवास माँगा। (अयोध्याकाण्ड) यही घटना समस्त वैदिक परम्परा में प्रचलित है। (ख) वसिष्ठ ऋषि ने सिद्धार्थ, नन्दन, जयन्त, अशोक आदि दूतों द्वारा भरत को उनकी ननसाल केकय देश से बुलवाया। (अयोध्याकाण्ड) अतः दशरथ की मृत्यु, राम के युवराज पद का उत्सव और राम का वन-गमन भरत की अनुपस्थिति में हुआ।
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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