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: : राम वन-गमन
पिता और पुत्र दोनों के एक साथ प्रनजित होने के समाचार से कैकेयी (भरत की माता) चिन्तातुर हो गई । वह पति और पुत्र दोनों का वियोग सहने में स्वयं को असमर्थ पा रही थी । नारी-सहज भीरुता ने उसे ग्रस लिया । हजारों राजाओं के घटाटोप, अनगिनत शस्त्रों की झंकार और लाशों से पटे रणस्थल में दुर्दमनीय साहस से रथ संचालन करने वाली कैकेयी पुत्र-मोह के कारण विह्वल हो गयी।
पहले तो नीतिवान कैकेयी ने पति और पुत्र को बहुत समझाया किन्तु जव उसकी बातों का कोई प्रभाव न हुआ तो उसने अपना अन्तिम शस्त्र निकाला। पति के निजी कक्ष में जाकर बोली___-नाथ ! आपको याद होगा मेरा एक वर आपके पास धरोहर रूप में रखा है। -~-मुझे भली-भाँति याद है । -दशरथ ने उत्तर दिया।
-आज उसके मांगने का समय आ गया है। --माँगो, जो मांगोगी, वही मिलेगा।
-यदि आप प्रव्रजित होना ही चाहते हैं तो भरत का राजतिलक कर दीजिए।
कैकेयी की भावना थी कि राज्य-भार सिर पर आ पड़ेगा तो भरत प्रबजित नहीं होगा।