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१६० | जैन कथामाला ( राम-कथा)
अपने-अपने आसनों पर बैठे हुए विद्याधरपति चन्द्रगति और कुमार भामण्डल राजाओं की ओर देखकर व्यंगपूर्वक मुस्करा रहे थे | उन्हें विश्वास हो चला था कि अब सीता विद्याधर नगरी में ही आयेगी ।
अन्त में श्रीराम उठे । उनके पुण्य प्रभाव से सर्प • और अग्निज्वालाएं अदृश्य हो गई। उन्होंने सहज रूप से वज्रावर्त धनुष को उठाया, प्रत्यंचा चढ़ाई और धनुष्टंकार कर दिया । छोटे भाई लक्ष्मण ने भी इसी प्रकार अर्णवावर्त धनुप चढ़ाकर टंकार की ।
दोनों भाइयों की धनुषटंकार से चन्द्रगति का दिल बैठ गया । पुत्र- विवाह के उसके स्वप्न विखर गये । वह समझ गया कि भावी बलभद्र और वासुदेव अवतरित हो चुके हैं ।
सन्तापित हृदय लेकर चन्द्रगति विद्याधर और कुमार भामण्डल रथनूपुर लौट गये ।
जनक ने प्रसन्न होकर दशरथ राजा को से सीता का विवाह राम के साथ सम्पन्न हो राजा जनक के अनुज कनक की पुत्री भद्रा का कनक की रानी सुप्रभा की पुत्री थी ।
कुछ समय मिथिला में रुककर राजा दशरथ अपने पुत्रों और वधुओं के साथ अयोध्या लौट आये ।
पुत्र
बुलवाया और धूमधाम गया । भरत के साथ लग्न हो गया । भद्रा
-त्रिषष्टि शलाका ७४
-उत्तर पुराण, पर्व, ६७।१६६-१८२ तथा पर्व ६८३०-३६, ६८१४७-४८
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