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दशरथ को वैराग्य
चार ज्ञान (मति, श्रुत, अवधि और मनः पर्यव ) के धारी महामुनि सत्यभूति संघ सहित अयोध्या के बाहर उद्यान में पधारे। वनपालक से श्रीसंघ के आगमन की सूचना पाकर राजा दशरथ हर्ष-विभोर हो गये । दीक्षा ग्रहण करने की ललसा तो उनके हृदय में अन्तःपुर के वृद्ध अधिकारी' के कारण बहुत समय पूर्व ही जाग्रत हो चुकी थी केवल
१ अन्तःपुर के वृद्ध अधिकारी घटना निम्न प्रकार है
एक बार राजा दशरथ की रानियों ने जिन विम्ब के अभिषेक का निश्चय किया । स्नात्र जल पहुँचवाने का उत्तरदायित्व स्वयं महाराज ने ग्रहण किया । अन्य रानियों का अभिषेक जल तो राजा ने दासियों के हाथ भिजवा दिया किन्तु पटरानी का अभिषेक जल ले जाने की आज्ञा अन्तःपुर के अधिकारी को दी । दासियाँ युवती थीं और अधिकारी वृद्ध | जवानी और बुढ़ापे की गति में जमीन-आसमान का अन्तर होता है । दासियाँ तो शीघ्रता से पहुँच गई और वृद्ध अधिकारी मन्द मन्द गति से चलता हुआ मार्ग में पिछड़ गया । अन्य रानियाँ तो भक्तिपूर्वक चैत्यमहोत्सव में भाग लेकर शान्तिस्नात्र करा रही थीं और पटरानी कुढ़ रही थी । उसे विचार उत्पन्न हुआ— 'सम्भवतः अव मैं महाराज को खटकने लगी हूँ | इसीलिए उन्होंने सार्वजनिक रूप से मेरा अपमान किया है । अब जीवित रहने से क्या लाभ ?"