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राम-लक्ष्मण का जन्म | १५६
से उठ खड़ा हुआ और बोला-'यद्यपि निमित्तज्ञों की बातें सत्य होती हैं किन्तु मैं इसका भविष्य-कथन मिथ्या प्रमाणितं कर दूंगा।' रावण ने पूछा---'कैसे ? क्या करोगे, तुम ?' विभीषण का प्रत्युत्तर था--'क्या करूँगा ? अभी राजा दशरथ के न तो कोई पुत्र हुआ है और न ही उसकी कोई रानी ही गर्भवती है । मैं दशरथ को ही मार डालूँगा तो उसका पुत्र कैसे उत्पन्न होगा और जव 'पुत्र ही न होगा तो आपको कोन मारेगा? न रहेगा वाँस, न वजेगी वाँसुरी।' रावण को विभीषण की वात पसन्द आई । उसने अपनी स्वीकृति देते हुए कहा-'विभीषण ! जैसा तुम ठीक समझो वैसा करो। चाहो तो दशरथ और जनक दोनों का ही प्राणान्त कर दो और चाहो तो एक का ही किन्तु मेरी इच्छा है कि कम से कम हिंसा से मेरी प्राण-रक्षा हो जाय । विभीषण ने भी बड़े भाई की इच्छा को प्रमाण माना
और सिर झुका दिया। ___ नारदजी के इस रहस्योद्घाटन से सम्पूर्ण राज्यसभा शोकमग्न हो गई । स्वामिभक्त मन्त्री ने पूछा___-देवर्षि ! महाराज की प्राणरक्षा का कोई उपाय ?
-मैं क्या जानूं ? अब आप लोग अपनी बुद्धि का प्रयोग करिये और उपाय खोजिए। -कहकर नारदजी उठ कर चलने लगे किन्तु स्वामिभक्त मन्त्री ने उन्हें रोक लिया। नारदजी कृत्रिम रोष दिखाते हुए बोले
-मन्त्री ! तुम तो पीछे ही पड़ गये ।
-किसी प्राणी की रक्षा में सहायक होना बुरा तो नहीं है । यदि आपकी बुद्धि से महाराज की प्राण-रक्षा हो जाय तो यह बुद्धि का सदुपयोग ही होगा।
नारदजी और मन्त्री दोनों ने मिलकर बुद्धि का सदुपयोग किया