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राम-लक्ष्मण का जन्म | १५७ मानवों आदि सभी ने तीर्थकर भगवान सीमन्धर स्वामी का महाभिनिष्क्रमण महोत्सव मनाया था, सर्वप्रथम तो में उसमें सम्मिलित हुआ।
-धन्य हैं, धन्य हैं, देवर्षि आप जो तीर्थकर भगवान के महाभिनिष्क्रमण में सम्मिलित हो सके-राजा दशरथ ने गद्गद स्वर से कहा और वहीं से भगवान को भाव-वन्दन किया। समस्त सभा तीर्थकर देव के प्रति श्रद्धावनत हो गई। नारद ने भी रोमांचित होकर प्रभु स्मरण किया। कुछ क्षण पश्चात दशरथ ने पुन: पूछा-उसके पश्चात कहाँ गमन हुआ, देवर्षि का। -घूमता-घामता लंका नगरी जा पहुंचा। -क्या हाल है लंकापति के ? -अच्छे ही हैं, राज्य सभा में चिन्तामग्न वैठा होगा। .-अर्द्धचक्री को क्या चिन्ता लग गई ?
-राजन् ! इस संसार में चिन्ता किसको नहीं है, सभी को है। किसी को धन की तो किसी को स्त्री की, कोई पुत्र के लिए चिन्तित है तो कोई कुपुत्र के कारण । सभी तो चिन्तित हैं, लंकेश चिन्तित है तो क्या नई वात है ?
१ महाभिनिष्क्रमणोत्सव-दीक्षा लेने के समय मनाया जाने वाला उत्सव ।
जिस समय यहाँ भरतक्षेत्र में भगवान मुनिसुव्रत नाथ का तीर्थ प्रवर्तमान था उस समय तीर्थंकर भगवान सीमन्धर स्वामी ने विदेह क्षेत्र में दीक्षा ग्रहण की थी।
-(त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र, ७।४ पृष्ठ ६०-गुजराती अनुवाद)