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:४: सोदास और सिंहरथ
सोदास राजा अयोध्या का शासन करने लगा । अठाई उत्सव आने पर मन्त्रियों ने कहा
-हे राजन् ! आपके पूर्वजों के समय से यह परम्परा चली आ रही है कि अठाई के दिनों में मांस के विक्रय, किसी जीव की हिंसा और मांस-भक्षण का निषेध कर दिया जाता था। इसी परम्परा के अनुसार हमने राज्य भर में मांस-भक्षण की मनाही करा दी है। हमारी प्रार्थना है कि आप भी इस उत्सव के दिनों में मांस-भक्षण का त्याग कर दें।
मन्त्रियों की सम्मति राजा ने स्वीकार कर ली। किन्तु वह मांस का अत्यन्त लोलुपी था । मांस के बिना उसको एक दिन भी चैन नहीं पड़ता था । उसने एकान्त में रसोइये को बुलाकर आज्ञा दी
-तुम गुप्त रूप से मांस लाकर मुझे खिला दिया करो।
रसोइये ने स्वामी की आज्ञा स्वीकार की। वह नगर भर में मारा-मारा घूमता रहा किन्तु कहीं उसे मांस मिला नहीं। विना मांस लिए राजमहल में पहुँचना खतरे से खाली नहीं था। कुपित होकर राजा न जाने क्या दण्ड देगा? वह राजा की मांस-लोलुपता से भली-भांति परिचित था ।