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सोदास और सिंहरथ | १५१
निराश और चिन्ताग्रस्त रसोइया श्मशान की ओर जा निकला | वहाँ उसे एक मृत-शिशु दिखाई दे गया । उसकी जान में जान आई । उसने मृत शिशु को उठाया और भली-भांति पकाकर राजा को परोस दिया ।
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राजा ने खाया तो उसे आज के मांस का स्वाद निराला ही लगा । ऐसा स्वादिष्ट मांस उसने पहले कभी नहीं खाया था । रसोइये.
से पूछा
- आज का मांस अन्य दिनों की अपेक्षा अलग मालूम पड़ता है । इसका स्वाद अलग है ।
-अन्नदाता ! क्या आज का भोजन रुचिकर नहीं है ? - बहुत स्वादिष्ट ! किंस प्राणी का मांस है यह ? रसोइया कहने लगा
– स्वामी राजाज्ञा के कारण मुझे नगर में कहीं भी मांस न मिला। मैं परेशान घूम रहा था कि एक मानव शिशु दिखाई दे गया । यह उसी का मांस है |
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जिह्वालोलुप राजा ने आज्ञा दी
:- आज से हमको मानव-मांस ही खिलाया करो । यह मांस बहुत स्वादिष्ट है। अच्छी तरह समझ गये ।
रसोइये ने स्वीकृति दी और मानव-मांस की खोज में रहने लगा । मानव-मांस किसी मांस विक्रेता की दुकान पर तो विकता नहीं और न ही प्रतिदिन मानव शिशु मरते ही हैं। अतः एक दिन उसने एक जीवित बालक को ही पकड़ लिया और उसे पकाकर राजा को खिला दिया ।
आज का मांस और भी स्वादिष्ट था । चटकारा लेते हुए सोदास ने पूछा