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रानी सिंहिका का पराक्रम | १४५ ऐसा विचार कर उन राजाओं ने अयोध्या को चारों ओर से घेर लिया । मन्त्रियों को और कुछ उपाय तो सूझा नहीं-आकस्मिक विपत्ति से रक्षा हेतु उन्होंने नगर के द्वार बन्द कर लिए।
सम्पूर्ण नगर पर उदासीन की काली घटाएं छा गई। प्रजा अपने को अरक्षित समझने लगी। मन्त्रियों ने कूटनीति का सहारा लिया । दूतों का आदान-प्रदान हुआ। प्रयास किया गया कि किसी प्रकार साम-दाम-भेद से विपत्ति टल जाय । राजा लोग वापिस चले जायँ और प्रजा अपने को सुरक्षित समझने लगे।
सवल राजा निर्बल से सन्धि नहीं करते और चतुर व्यक्ति अवसर से लाभ उठाये विना नहीं मानते-इस नीति को ध्यान में रखकर राजाओं ने कोई सन्धि नहीं की। वे तो अयोध्या को अपने अधिकार में लेने का संकल्प कर चुके थे। उनकी दृष्टि में अहर्निश अयोध्या का राज्य सिंहासन और वैभव घूमता रहता। अपनी सफलता का उन्हें पूर्ण विश्वास था।
अयोध्या के मन्त्रियों के मुख निराशा से पीले पड़ गये थे। रानी सिंहिका को भी दास-दासियों द्वारा राज्य सभा में होने वाली बातों का पता लग जाता था। उसे विश्वास हो गया कि यह विपत्ति सहज टलने वाली नहीं है । उसने प्रधान को बुलवाया और उचित आदर प्रदर्शित करते हुए बोली
-प्रधानजी ! शत्रु किसी भी शर्त पर सन्धि करने को तैयार
-नहीं महारानीजी ! ये तो अयोध्या पर अधिकार करने को कटिवद्ध हैं।
-आपने क्या उपाय सोचा ?
-क्या सोचूँ ? सभी उपाय विफल हो गये हैं। अव तो दो ही मार्ग शेष हैं या युद्ध अथवा समर्पण ।