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साले-बहनोई की दीक्षा | १३७ कुमार वज्रबाहु के संयम का समाचार सुनकर राजा विजय का विवेक जाग्रत हुआ। उनके हृदय में विचार आया- 'मुझ से तो ये 'बालक ही उत्तम हैं जो कल्याण मार्ग पर अग्रसर हो गये।' और छोटे पुत्र पुरन्दर को राज्य का भार देकर मुनि निर्वाणमोह के पास जाकर दीक्षित हो गये।
अयोध्या का शासन पुरन्दर चलाने लगे। उनकी रानी पृथ्वी से कीर्तिधर नाम का पुत्र हुआ। पुत्र युवा हो गया तो उसे राज्य भार 'देकर क्षेमंकर मुनि के पास पुरन्दर ने भी दीक्षा ग्रहण कर ली।
-त्रिषष्टि शलाका ७।४
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