________________
१३६ / जैन कथामाला (राम-कथा) वज्रवाह के दृढ़ निश्चय से प्रभावित हो गया। वह भी उनके पीछेपीछे चलने लगा।
पति और भाई दोनों को जाते देख मनोरमा का हृदय धकधक करने लगा। वह रथ से उतर कर दौड़ी आई और पति से पूछने लगी
-स्वामी ! मेरे लिए क्या आज्ञा है ?
वज्रबाहु ने उसको ऊपर से नीचे तक देखा और बढ़ स्वर में कहा. -देवी ! मैं तुम्हें क्या आजा दूं? जो तुम्हारी इच्छा हो वही करो। ___-मेरी इच्छा तो वही है जो आपकी है। पति के अनुसार ही पत्नी का आचरण होता है । . -तव तो तुम्हारा कर्तव्य स्पष्ट है। यदि तुम चाहो तो संयम ग्रहण करो अन्यथा तुम्हारा मार्ग कल्याणप्रद हो ।
मनोरमा भी उनके पीछे-पीछे चल दी।
सभी ने जाकर मुनिश्री से संयम लेने की प्रार्थना की। मुनिश्री ने देखा कि राजकुमार नवविवाहित है तो उन्होंने समझाने का प्रयास किया
-भद्र ! संयम का मार्ग काँटों की सेज है। भली-भाँति विचार कर लो। कहीं पाँव लड़खड़ा न जाय !
कुमार ने उत्तर दिया-नहीं प्रभु ! ऐसा नहीं होगा। वज्रवाहु की दृढ़ता देखकर मुनिराज ने उसे प्रबजित कर लिया। उसके साथ ही उदयसुन्दर, मनोरमा और अन्य पच्चीस राजकुमारों ने संयम धारण किया।