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: १५ : सती अंजना
महेन्द्रपुर नगर के राजा महेन्द्र की रानी [हृदयसुन्दरी से अरिदम आदि सौ पुत्रों के बाद अंजनासुन्दरी नाम की एक पुत्री का जन्म | हुआ । उसके युवावस्था में प्रवेश करने पर राजा महेन्द्र ने पुत्री के लिए वर की खोज प्रारम्भ की। अनुचर अनेक कुमारों के चित्र लाकर देने लगे । एक दिन राजा के पास दो एक-से चित्र आये दोनों ही कुमार एक-से कुल-शील वाले और समान पराक्रमी थे ।
-मन्त्रिवर ! ये दो कुमारों के चित्र हैं । एक है विद्याधरपति हिरण्याभ तथा उसकी रानी सुमना का पुत्र - विद्युत्प्रभ और दूसरा आदित्यपुर के विद्याधर राजा प्रह्लाद तथा उसकी रानी केतुमति का पुत्र पवनंजय । इनमें से किसे अपनी पुत्री देनी चाहिए ।
- स्वामी ! पवनंजय ही उचित वर है, क्योंकि वह दीर्घायु वाला है और विद्युत्प्रभ की आयु केवल अठारह वर्ष ही शेष है । अतः मेरी सम्मति में तो कन्या पवनंजय को ही देना चाहिए । मन्त्री ने स्पष्ट और निर्भीक सम्मति दी ।
राजा महेन्द्र ने मन्त्री की सम्मति स्वीकार कर ली ।
उस समय अनेक विद्याधर राजा अरिहन्त भगवन्तों की वन्दना के निमित्त जा रहे थे । उनमें विद्याधर प्रह्लाद भी था । राजा महेन्द्र ने