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१०८ | जैन कथामाला (राम-कथा) उसे देखा तो अपनी पुत्री के विवाह का निवेदन किया। प्रह्लाद ने तुरन्त स्वीकृति दे दी और तीन दिन बाद मानसरोवर पर लग्न करना निश्चित हो गया।
लग्न के निमित्त राजा महेन्द्र अपने परिवार सहित मानसरोवर जा पहुंचा।
युवा हृदय अधीर होता है । भावी पत्नी कैसी है, जिसके साथ जीवन गुजारना है, उसकी एक झलक देखने की उत्कण्ठा, तीव्र लालसा होती ही है। पवनंजय के हृदय में भी ऐसे ही विचार उठ . रहे थे। उसने अपने मित्र प्रहसित को अपनी अधीरता से अवगत कराया । प्रहसित ने हँसकर कहा- . . . - -अभी से इतने अधीर मत बनो । जी भरकर देख लेना, देखते :
ही रहना- तीन दिन की ही तो वात है। .. ये तीन दिन तो तीन युग हैं । मित्र बस एक झलक मिल जाय।
प्रहसित ने समझ लिया कि कुमार भावी पत्नी को देखे बिना नहीं मानेगा । उसने धैर्य बँधाया. -तुम्हारी यही इच्छा है तो अर्धरात्रि को हम लोग अदृश्य रूप
से चलेंगे तब तुम अपनी प्रिया को देख लेना। · कुमार आश्वस्त हुआ। अर्धरात्रि हुई। दोनों मित्र विद्याबल
से अदृश्य होकर अंजनासुन्दरी के महल में आये। अंजना के भवन में दीपक जल रहा था और उसकी दो सखियाँ बैठी चुहल कर रही थीं। ____ वसंततिलका नाम की सखी ने कहा --संखी ! तेरे धन्य भाग्य हैं, जो पवनंजय जैसा पति मिल रहा है।
तुरन्त दूसरी सखी मिश्रका ने प्रतिवाद किया-अरे सखी ! विद्युत्प्रभ के समान दूसरा कौन है ?