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१०६ / जैन कथामाला (राम-कथा)
ऐसी दृढ़ प्रतिज्ञा' करके रावण केवली भगवान की वन्दना करके चला आया और लंका में आकर सुखपूर्वक राज्य करने लगा। .
–त्रिषष्टि शलाका ७/२ * *
१ वाल्मीकि रामायण के अनुसार वलात्कार त्याग की घटनाएं निम्न प्रकार
हैं । इनमें रावण त्याग नहीं करता, वरन् भय के कारण सम्भोग में प्रवृत्त नहीं हो पाता। (क) लंकादहन के पश्चात जब रावण अपनी राज्यसभा में मन्त्रियों, भाइयों, पुत्रों और सभासदों के बीच बैठा विचार-विमर्श कर रहा था तब महापाव नामक सभासद ने उसे सीता के साथ बलात् भोग करने की सलाह दी। इस पर रावण ने कहा --
-महापार्श्व! बहुत दिन हुए एक बार मैंने पुंजिकस्थला नाम की अप्सरा को पितामह (ब्रह्माजी) के आश्रम में जाते देखा। वह मेरे भय से लुकती-छिपती जा रही थी। मैंने उसके साथ वलात् भोग कर लिया। इसके बाद जब वह ब्रह्माजी के आश्रम में पहुंची तो उन्हें सब बातें मालूम हो गई। इस पर उन्होंने रुष्ट होकर मुझे शाप दिया कि 'आज से यदि तुम किसी दूसरी स्त्री के साथ बलात्कारपूर्वक समागम करोगे तो अवश्य ही तुम्हारे सिर के सौ टुकड़े हो जायेंगे।' इस शाप के भय से ही मैं सीता को जबर्दस्ती अपनी शय्या पर नहीं ले जाता।
वाल्मीकि रामायण, युद्ध काण्ड] (ख) दूसरा शाप रावण को तव मिला जब उसने इन्न से युद्ध हेतु जाते समय अप्सरा रम्भा के साथ बलात्कार किया था । तव रम्भा के मुख से उसकी करुण कथा सुनकर वैश्रवण (रम्भा के पति नल-कूबर का पिता और ऋषि विश्रवा का पुत्र) ने शाप दिया कि आज से रावण किमी न चाहती स्त्री से जबर्दस्ती संभोग करेगा तो उसके सिर के सात टुकड़े हो जायेंगे।
[वाल्मीकि रामायण, उत्तरकाण्ड]