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रामचरित बहुत विशाल है, घटनाबहुल हैं, इसलिए प्रस्तुत कथामाला के पांच भागों में इसे सम्पूर्ण किया गया है और सम्पूर्ण रामकथा एक ही जिल्द में रखी गई है। साथ ही विषयवस्तु की दृष्टि से भी राम-कथा को चार विभागों में बाँट दिया गया है।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि पाठक तटस्थ एवं स्वस्थ दृष्टि से इसका अनुशीलन करेंगे । राम के उज्ज्वल चरित्र से प्रेरणा लेंगे। अगर कहीं किसी को कुछ विचारणीय, तर्कणीय जैसा लगे तो वह सहृदयतापूर्वक सम्पादक बन्धु से विचार चर्चा भी कर सकता है। हाँ, रामकथा को समझने का परम्परागत साम्प्रदायिक चश्मा उतारकर-विवेक बुद्धि के साथ उसे पढ़े, देखें। .
मेरा स्वास्थ्य अनुकूल न रहते हुए भी मैंने यथाशक्य प्रयत्न किया है कि पुस्तक सार्वजनिक सर्वजनोपयोगी बने । इसे अधिक से अधिक सुन्दर अनुशीलनात्मक बनाने में श्रीयुत श्रीचन्द जी सुराना 'सरस' ने तथा श्री बृजमोहन जैन ने जो सहयोग दिया है, उसके लिए मैं उन्हें भूरि-भूरि साधुवाद देता है।
पूज्य स्वामी श्री वृजलालजी महाराज की सतत प्रेरणा एवं श्रीविनय मुनि, श्री महेन्द्र मुनि की सेवा-सुश्रूषा ने मेरी साहित्य-सर्जना को गतिशील रखा है, उसके लिए मैं किन शब्दों में आत्म-सन्तोष व्यक्त करूं।
आशा है यह 'राम-कथा' मानव को 'राम' बनने की प्रेरणा देती रहेगी... २०३४ कार्तिक पूर्णिमा
-मधुकर मुनि पाली.