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रामकथा : एक अनुशीलन
दशरथसुत श्रीराम और जनकसुता महासती सीता का उदात्त और उज्ज्वल चरित्र भारतीय जनमानस को प्राचीनकाल से ही सच्चरित्र' की ओर प्रेरित करता रहा है तो श्रद्धाशील भावुक लेखकों की लेखनी को गतिशील भी बनाता रहता है । अनेक कवियों ने इस पावन गंगा में डुबकी लगा कर स्वयं को पवित्र भीं किया है और काव्य चमत्कार भी दिखाये हैं ।"
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भारत की तीनों प्रमुख परम्पराओं (जैन, बौद्ध और वैदिक) ने राम-सीता की यशोगाथा गाई है। पुराणों, काव्यों, नाटकों, कथा-कहानियों में इनका पावन-चरित्र बाँधा है । प्राचीन युग से अब तक रामकथा निरन्तर लिखी जाती रही है । युग-युगों में लेखक बदलते रहे," भाषाएँ परिवर्तित होती रहीं,
किन्तु मूल एक ही रहा - राम-सीता का प्रेरणाप्रदः आख्यान |
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वैविध्य आ जाना सहज-'
में
अपनी कल्पना से अपने जोड़ना - अपना जन्मसिद्ध
जिस कथानक के लेखक अनेक हों, उसमें वर्णन स्वाभाविक होता है । प्रत्येक रचनाकार मूल कथा देशकाल की परिस्थिति के अनुकूल कुछ-न-कुछ अधिकार-सा मानता है, अथवा यों समझिये कि विना कल्पना का रंग चढ़ाये कथा-साहित्य का निर्माण हो ही नहीं पाता । इसके अतिरिक्त सोचने-समझने का ढंग, लेखन शैली, विषय का प्रस्तुतीकरण आदि तो लेखक का अपना होता हो है । राम-कथा में भी इसी प्रकार के अनेक वैविध्यपूर्ण वर्णन हैं । यह विविधता कथा लेखकों को विभिन्न रुचि का प्रमाण भी है ।
जिस प्रकार महानदी में अनेक छोटी-मोटी नदियाँ आकर मिलती हैं उसी प्रकार महाकाव्य में अनेक अन्तर्कथाएँ, उपाख्यान भी जुड़ते रहते हैं । राम