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________________ ( ८ ) रहे हों, तीर्थकर वर्द्धमान (महावीर) रहे हों, या बलदेव राम रहे हों उच्चतम आध्यात्मिक विकास करके, मानवता की महान सेवा करके, वे मानव से महामानव, मनुस्य से भगवान बने हैं। वर्तमान महावीर भी देहत्याग कर सिद्ध भगवान बने और मर्यादा पुरुषोत्तम राम भी देह त्याग कर सिद्ध भगवान वने हैं। दोनों ही परम श्रद्धेय हैं, उनकी वर्तमान भूमिका में आज कोई अन्तर न्य से भगवान का महान सेवा करके उच्चतम हैं। दोनों ही परमादा पुरुषोत्तम राम भी महावीर मी देहत्याग कर वाला प्रत्येकालान कभी भी अपका मुख्य कारण are बिना के बाहर मनुष्य रूप धारण नहीं करते। . प्रश्न है, फिर राम-क्रया में जैन व हिन्दु ग्रन्यों में इतना अन्तर क्यों ? जहां तक मेरा नध्ययन-मनन है, इसका मुख्य कारण दृष्टिकोण का है । जैन दृष्टि में-भगवान कमी भी अवतार (द) धारण नहीं करते । भगवान बनने. वाला प्रत्येक व्यक्ति प्रयम मनुप्य रूप में ही जन्म धारण करता है, फिर अपनी साधना के माधार पर व्यक्तित्व का, मात्मा का विकास करता हुआ वह माध्यात्मिक विकास की उस चरम भूमिका पर पहुंच जाता है, जहाँ पहुंचकर मानव भगवान के ल्प में प्रतिष्ठित हो जाता है। जैन दृष्टि-महावीर को एवं गम को इसी दृष्टि से देखती है, इसलिए उनका जीवन वृत्त भी मानवीय होता है. भगवढीय नहीं । जैन दृष्टिकोण राम के व्यक्तित्व को मानवीय धरातल से विकसित करता हुआ, रामचरित को ऊँचा से ऊंचा उठाता हुआ अन्त में भगवद् सीमा पर पहुंचाता है। जबकि हिन्दु दृप्टिकोण इसके विपरीत - राम को भगवान का अवतार मानकर चलता है । राम-कथा में जहाँ-जहाँ भा अन्तर माया है, उसका मूत्य कारण यही दृष्टिकोण रहा है। सचाई तो यह है कि हिन्दू अन्यों की अपेक्षा जैन ग्रन्थों में राम, सीता आदि रामायण के सभी पात्रो का चरित्र अधिक श्रेष्ठ, अधिक उदार और सहज-स्वाभाविक चित्रित हुआ है। रामचरित (अन्यों एवं घटनाओं) की तुलना के लिए पाठक इसी पुस्तक की भूमिका---'राम-कथा एक मनुशीलन' पढ़ेंगे तो इस सम्बन्ध में व्याप्त प्रान्तियों का निराकरण सहन ही हो जायेगा। सम्पादकीय-.-"समक्रया : एक अनुशीलन" देखें .
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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