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हिंसक यज्ञों की उत्पत्ति | ७५ निर्णय होते ही नारद के पैरों के नीचे से धरती खिसक गई और राजा वसु के सिंहासन के नीचे से स्फटिक शिला सिंहासन सहित वसु धड़ाम से जमीन पर आ गिरा। तत्काल वहीं उसके प्राण-पखेरू निकले तथा और भी नीचे जाकर उसकी आत्मा घोर नरक में जा पड़ी-मिथ्या वोलने, धर्म का अपलाप करने के दण्ड स्वरूप चिरकाल तक घोर कष्ट भोगने के लिए।
उसके सिंहासन के नीचे से स्पाटिक शिला निकाल दी थी-. देवताओं ने । उन्हें उसका अक्षम्य अपराध सह्य नहीं हो सका था।
वसु के पश्चात् एक-एक करके उसके आठ पुत्र-पृथुवसु, चित्रवसु, वासव, शुक्र, विभावसु, विश्वावसु, सुर और महासुर-सिंहासन पर बैठे किन्तु देवताओं ने उनका भी प्राणान्त कर दिया । भयभीत होकर नवाँ पुत्र सुवसु नागपुर भाग गया और दशवाँ पुत्र बृहद्ध्वज मथुरा आ गया।
१ यहाँ राजा वसु का सिंहासन पृथ्वी में समा जाने की घटना का उल्लेख
राजा सगर, सुलसा आदि की मृत्यु के बाद हुआ है। अयोध्या में अपने हिंसक यज्ञों का प्रचार करके पर्वत पुनः अपने नगर में लौटा । उस समय नारद और पर्वत का विवाद हुआ और राजा वसु अपने मिथ्या वचनों के कारण पृथ्वी में सिंहासन सहित धंस गया।
-उत्तर पुराण ६७।३१५-४३६ इसके पश्चात इतना और है कि महाकाल व्यन्तर ने राजा वसु को अपनी माया से यह कहता हुआ दिखा दिया-'केवल हिंसक यज्ञों
पर श्रद्धा करने से ही हमको स्वर्ग प्राप्त हुआ है।' २ यहाँ वसु के पुत्रों का कोई उल्लेख नहीं हैं ।
- उत्तर पुराण ७६४४०