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रावण का पराक्रम | ४५
सेवक की दौड़ स्वामी तक । इन्द्र (रथनपुर का राजा) की सभा में जाकर उसने हाथ जोड़कर अपनी दुर्दशा बताते हुए कहा
---स्वामी ! राक्षसपति रावण ने मेरा यमपना भुला दिया। मेरा पराभव करके राज्य छीन लिया और प्राण बचाने के लिए मुझे भागकर आपकी शरण में आना पड़ा। ___ यमराजा की बात सुनकर इन्द्र कुपित होकर रावण से युद्ध करने को तत्पर हुआ किन्तु उसके मन्त्रियों ने अनेक प्रकार से समझाकर उसे रोक दिया । इन्द्र ने यम को सुरसंगीतपुर का राज्य दे दिया।
यम सुरसंगीतपुर में और इन्द्र रथनूपुर में सुख-भोग करने लगा। स्वामी भी खुश और सेवक भी प्रसन्न !
रावण भी किष्क्रिधापुरी आदित्यराजा को और ऋक्षपुर क्षराजा को सौंपकर वापिस लंकापुरी चला आया ।
आदित्यराजा की रानी इन्दुमालिनी से महाबलवान पुत्र बाली हुआ । वह दृढ़ सम्यक्त्वी, सच्चा जिनेन्द्र भक्त और धर्मानुरागी था। पंच परमेष्ठी के अतिरिक्त किसी अन्य को आराध्य मानकर मस्तक न झुकाना उसका नियम था। उसके बाद इन्दुमालिनी ने सुग्रीव तथा श्रीप्रभा नाम की कन्या को और जन्म दिया। .
ऋक्षराजा के हरिकान्ता नाम की स्त्री से नल और नील नाम के जग विख्यात पुत्र हुए।
अपने अति वलवान और योग्य एवं समर्थ पुत्र वाली को राज्य देकर आदित्यराजा ने प्रव्रज्या ले ली और तप करके सिद्ध गतिं प्राप्त की। ___अव किष्किधा नगरी का अधिपति वाली था और युवराज सुग्रीव !
-त्रिषष्टि शलाका ७२