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________________ माता-पिता द्वारा विवाह व्यवस्था:-वासुदेव हिण्डी में बाल-विवाह का संदर्भ नहीं है। वर और नववधू जब विवाह के योग्य हो जाते थे तभी वैवाहिक सम्बन्ध होते थे। वासुदेव हिण्डी के अनुसार सगाई, कभी-कभी बचपन में ही हो जाती थी174 । ऐसा भी उल्लेख प्राप्त होता है कि भाई और बहिन अपने बच्चों का विवाह निश्चित कर लेते थे175 | स्वयंवर-विवाहः-स्वयंवर विवाह का वर्णन वासुदेव हिण्डी से प्राप्त होता है। युवती अपनी इच्छानुसार वर का चुनाव व्यक्तिगत रूप से कर लेती थी।176 स्वयंवर में आमन्त्रित वरों का चुनाव सार्वजनिक रूप से भी कुमारियाँ करती थीं ।177 इस प्रकार की विशेष सुविधा राजघराने की कुमारियों को प्राप्त थी ।178 इस प्रकार के विवाहों के परिणाम, चूंकि राजनैतिक हो सकते थे, इसलिए राजा अपने मन्त्रियों का परामर्श प्राप्त करता था|79 कभी-कभी प्रतियोगी वैवाहिक सम्बन्ध भी होते थे। प्रतियोगी वर को नृत्य-गान में अपनी श्रेष्ठता का परिचय देना पड़ता था।180 प्रतियोगिता के द्वारा वैवाहिक संदर्भ केवल वासुदेव हिण्ड़ी में उपलब्ध है। हरिभद्र के विचारों के अनुसार विवाह का लक्षय जीवन में पुरुषार्थो को सिद्ध करना था। गृहस्थ जीवन का धर्म दान देना, देव पूजा करना एवं मुनिधर्म को प्रश्रय देना है। साधु-संतो को दान देने का कार्य गृहस्थ जीवन के अभाव में सम्पन्न नहीं हो सकता है। इसलिए विवाह एक गृहस्थ के लिए आवश्यक था। समाज शास्त्र की दृष्टि से विवाह का कार्य और उद्देश्य निम्न है 1. स्त्री-पुरुष के यौन सम्बन्ध का नियन्त्रण और वैधीकरण, 2. सन्तान की उत्पत्ति, सरंक्षण, पालन और शिक्षण, 3. नैतिक, धार्मिक और सामाजिक कत्र्तव्यों का पालन । उद्योतन सूरि ने कुवलयमाला में विवाहोत्सव का वर्णन किया है। ( 41 )
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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