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ग्यारहवी:-शताब्दी तक इन्हे क्षत्रिय जाति में रखा जाने लगा। हूण जातियाँ पंजाब की जनता में अत्यधिक मिश्रित हो गयी हैं158 ।
विवाह
वासुदेव हिण्ड़ी के अनुसार विवाह-परम्परा का प्राचीनत्व ऋषभनाथ के समय से देखा जा सकता है। इस परम्परा के अन्तर्गत, ऋषभ सर्वप्रथम थे, जो विवाहित हुये। इस परम्परा के संस्थापक देवताओं के स्वामी (देवराया) थे159 1 ब्राह्मण वर्ण के लोग सभी चार वर्णो की महिलाओं से विवाह करने के लिए सक्षम थे160 । परन्तु, सामान्यत: वैवाहिक सम्बन्ध का प्रचलन अपने ही वर्ण में अधिक प्रचलित था161 या उन परिवारों के साथ जिनकी सामजिक स्थित सम थी (सरिस कुल)162 स्मृतियों163 में संदर्भित आठ प्रकार के विवाह जो परम्परागत प्रचलित थे, उनमें एक (गंधव विवाह धम्म)164 गांधर्व विवाह का संदर्भ, वासुदेव हिण्डी में प्राप्त होता है, जबकि कुछ अन्य प्रकार के विवाहों को दो रुपों में वर्गीकृत किया जा सकता है अर्थात् 'आसुर' और राक्षस । वासुदेव हिण्डी, के अनुसार अधिकतर विवाह माता-पिता द्वारा निश्चित किये जाते थे।
गांधर्व विवाहः-दूल्हा और दुलहिन प्रेम हो जाने के कारण चुप के से विवाह कर लेते थे। इस प्रकार के विवाह का उदाहरण वासुदेव हिण्डी के धम्मिल और मेहमाला165, धम्मिल और विमल सेना166 और वासुदेव और पियमगुसुम्दरी167 के विवाहों से प्राप्त होता है। इस प्रकार के विवाह में कोई धार्मिक कृत्य नहीं सम्पन्न होते थे। धम्मिल देवता के समक्ष नतमस्तक होकर, नवविवहिता पत्नी का दाहिना हाथ स्वीकार किया।168
राक्षस विवाहः-इस प्रकार के विवाह में वर नववधू का अपहरण कर लेता था169 या बिना नववधू की सहमति के ही भगा ले जाता था70 या जैसा कि स्वयंवर में171 या अन्यथा ।172 इस प्रकार की रीतियों का प्रचलन योद्धा वर्ग में था।
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