SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मागधः-का उल्लेख उद्योतन ने देसी बनियों के साथ किया है145 | आठवीं शताब्दी में मागध पशोगायकों की भी एक जाति थी, जो राज्य दरबारों में जाकर राजाओं का गुणगान करते थे146 । अनार्य जातियों के प्रसंगों में अंध, भर रुचा, द्रविड़ एवं मालव147 का मठ के छात्रों की बातचीत के प्रसंग में अरोट्ट148, मालविय कणुज्ज सोरट्ठ, श्री कंठ का उल्लेख किया है। आरट्ट:-प्राचीन भारत में आरट्ट जाति के सम्बन्ध में बुद्ध प्रकाश का मत है कि पंजाब में अनेक समुदायों ने आयुधों को अपनी जीविका का साधन बना लिया था तथा उनके नये नियम विकसित हो गये थे। कौटिल्य ने इन्हे आयुधजीवी कहा है149 । इन्हें अरष्ट्रका: भी कहा जाता था150 । कुवलयमाला में प्रयुक्त ‘आरोटे', 'आरट्ट' का अपभ्रंश प्रतीत होता है। गुज्जर:-उद्योतन सूरि ने गुर्जरपथिक (गुज्जरपहियएण)151, गुर्जर बनिये! 52 तथा गुर्जर देश153 का उल्लेख किया है। प्रतिहार राजाओं के साथ गुर्जर शब्द का प्रयोग किस कारण हुआ इस विषय पर दशरथ शर्मा ने विवेचन प्रस्तुत किया है ।154 चौथी शताब्दी में वु-सुन उच्चारण गुसुर के रूप में होने लगा और गुसुर से भी 'गुर्जर' शब्द प्रयुक्त होने लगा। छठवीं शताब्दी में गुर्जरों का भारत में विशेष प्रसार हुआ है155 । कुवलय माला में कुछ विदेशी जातियों का वर्णन है जिनके नाम विदेशी है, परन्तु वे भारतीय समाज में सम्मिलित होती जा रही थी: शक, यवन, बर्बर, हूण, रोमस, पारस, खस, ताज्जिक, अरवाग, कोंचा, चंचुय एवं सिहला भारत में हूणों का आगमन लगभग चौथी शताब्दी में हुआ'56 1 होआ-तुन और संस्कृत का 'हूण' एक ही जाति से अभिज्ञानित हैं157 । (39)
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy