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1. ब्राह्मण पुरोहित का कार्य करते थे। जन्म पत्री, लग्नपची देखने तथा विवाह सम्पन्न कराने का कार्य भी उन्हीं का था। विवाह कराने वाले द्विज अनेक वेद तथा सिद्धान्त शास्त्रों में पारंगत होते थे। इन्हें प्रभूत दक्षिणा दी जाती थी।
2. राज-दरबार में नियुक्त ब्राह्मणों को महाब्राह्मण कहा जाता था, जो सम्मान सूचक
3. मांगलिक अवसरों पर अथवा यात्रा प्रारम्भ के समय ब्राह्मणों को दक्षिणा दी जाती थी तथा उनके आशीर्वाद प्राप्त किये जाते थे।
4. वेद पाठ करने वाले ब्राह्मण श्रौतिक ब्राह्मण कहे जाते थे।
5. ब्राह्मण-भोज कराना तत्कालीन समाज में पुण्य प्राप्ति का साधन था। संकट के समय तथा किसी सम्बन्धी की मृत्यु के बाद ब्राह्मण-भोज कराया जाता था।
6. ब्राह्मण को गौ, भूमि, धान्य एवं हल आदि दान करना धर्म माना जाता था।
तीर्थयात्रा को जाते समय व्यक्ति अपनी सम्पत्ति ब्राह्मण को दान में दे देते थे।
8. ब्राह्मण जन्म के दरिद्री होते थे। कोई ही धनी होता था।
9. ब्राह्मणों की कुछ निश्चित क्रियायें थीं। उनके घरों में प्रतिदिन गायत्री का जाप होता था। वे यज्ञ करते थे। यदि ब्राह्मण अपनी क्रियाओं से शिथिल हो अन्य कार्य करने लगता था तो समाज में उसकी निन्दा होती थी।
10. ब्राह्मणों की अपनी पाठशालाएं थीं जहां वेद पाठ होता था।
11. नगर में ब्राह्मण संघ तथा ब्राह्मणकुल तो होते ही थे, दान में प्राप्त गांव में ब्राह्मणों का निवास होने से गांव का नाम ही अग्गाहार पड़ जाता था।
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