________________
___ माकन्दी नगरी में यज्ञदन्त नाम का जन्म-दरिद्री श्रौत्रिक ब्राह्मण रहता था। उसके यज्ञसोम नाम का पुत्र था। उस नगर में जब अकाल पड़ता तो लोग ब्राह्मण पूजा भूल गये (विसंवयति बंभण-पूयाओं)। यज्ञदन्त ने याचना मात्र व्यापार को अपना कर भिक्षा-वृत्ति प्रारम्भ की, किन्तु भरण-पोषण न होने से वह मर गया। उसका पुत्र यज्ञसोम किसी प्रकार जीवित रहा, किन्तु उससे ब्राह्मण की सभी क्रियाएं छूट गयीं (अकय-बंभण क्कारो) तथा शरीर पर जनेऊ भी न रहा (अबद्ध-मुंजु-मेहलो) अत: बन्धु-बान्धवों ने उसे त्याग दिया। लोगों ने “यह ब्राह्मण-पुत्र" (बंभण-डिंभो) यह सोचकर उसे कष्ट नहीं होने दिया। अत: यज्ञसोम ने किसी प्रकार उस अकाल को व्यतीत किया और वह ब्राह्मण बटुक (बंभणो सोमवडुओ) सोलह वर्ष का हो गया। जीविका के लिये वह कचड़े खाने को साफ करता तथा जूठे कुल्हड़ों को फेंकता था। अत: उस पर लोग हंसते थे कि वह कैसा ब्राह्मण है22 इस प्रकार की निन्दा और उपहास के कारण वह नगर छोड़ कर चला गया।
हस्तिनापुर में भगवान महाबीर का समवसरण लगा था। वहाँ एक ब्राहमण का पुत्र (बंभण-दारओ) उपस्थित हुआ। उसके श्याम वक्ष स्थल पर श्वेत ब्रहम सूत्र शोभित हो रहा था। गले में दुपट्टा पड़ा था23 । भगवान ने उसका परिचय देते हुए कहा कि यहाँ से पास में ही सरलपुर नाम का ब्राहमणों का एक अग्गाहार है-बंभणाणं अग्गाहार । वहाँ यज्ञदेव नाम का चतुर्वेदी रहता है। उसके पुत्र का नाम स्वयंभूदेव है। दुर्भाग्य से वह इतना निर्धन हो गया कि लोक-यात्रा करना उसने छोड़ दिया, अतिथि सत्कार करना उसने छोड़ दिया, ब्राह्मण की क्रियाएं शिथिल पड़ गयीं। अंतत: अपनी माता के कहने पर वह धन कमाने के लिए घर के बाहर निकल गया।
जैन कथा साहित्य से ब्राह्मणों के विषय में संक्षेप में अधोलिखित बातें मुख्यत: ज्ञात होती है ।24
(28)