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12. ब्राह्मण वध समाज में निन्दनीय माना जाता था। महा पापी, म्लेच्छ ही ब्राह्मण का ध्यान नहीं रखते थे।
क्षत्रिय:-पराक्रम क्षत्रिय जाति का मुख्य लक्षण था26 । जैसा कि वासुदेव हिण्डी में उल्लेख है, क्षत्रिय किसी भी खतरे से लोगों की रक्षा कहते थे26 । उन्हे राजन्य भी कहा जाता था और राजा इसी वर्ण के लोग थे। आध्यात्मिक क्षेत्र में, वे किसी भी माने में ब्राह्मणों से कम नहीं होते थे। जैन-धर्म के सभी चौबीस तीर्थंकर क्षत्रिय वर्ण के थे। इस सम्बन्ध में वासुदेव हिण्डी का एक उदाहरण महत्वपूर्ण है सम्राट हरिकंड ने एक क्षत्रिय वंशज (क्षत्रिय कुमार) को अपना धार्मिक सलाहकार नियुक्त किया28 । ब्राह्मण और क्षत्रिय वर्ण के वैचारिक मतभेद का संकेत परशुराम की कहानी में मिलता है29 । कहानी के अनुसार क्षत्रियों के प्रति परशुराम की घृणा भावना इस लिये जागृत हो उठी कि एक क्षत्रिय ने परशुराम के पिता की हत्या कर दी थी। परशुराम ने इक्कीस बार में उन सब की हत्या कर डाली। प्रतिशोध की भावना से राजा कट्टवीरिय ने इक्कीस वार ब्राह्मणों की हत्या किया। केवल उन्हीं लोगों को हत्या से मुक्त कर दिया गया जिन्होंने अपने को ब्राह्मण होने से इंकार कर दिया था।
उद्योतनसूरि ने क्षत्रिय वर्ण के सम्बन्ध में इस प्रकार जानकारी दी है। उज्जयिनी के राजा उवन्तिवर्धन के दरबार में राजवंश में उत्पन्न क्षेत्रभट नाम का एक वृद्ध ठाकुर अपने पुत्र वीरभट के साथ राजा की सेना में नियुक्त था। उसे सेवा के बदले में कूपवन्द्र नामक गाँव राजा ने दिया था। उस वृद्ध ठाकुर के पौत्र शक्तिभट को दरबार में एक निश्चित आसन प्राप्त था, जिस पर कोई दूसरा व्यक्ति नहीं बैठ सकता था।
कुवलयमाला में उल्लिखित जुण्ण-ठक्कुर के सम्बन्ध में बुद्ध प्रकाश ने पर्याप्त प्रकाश डाला है तथा ठाकुर शब्द की व्युत्पत्ति के विषय में विचार किया है30 । क्षत्रियों के अतिरिक्त ठाकुर (ठक्कुर) शब्द ब्राहमणों के लिये भी प्रयुक्त होता था, गहड़वाल वंश के गोविन्द चन्द्र के लेख में ठक्कुर को कश्यप-गोत्रीय सरयूपारी ब्राह्मण कहा गया है। चंदेल लेखों में उल्लिखित ठक्कुर के साथ राउत नामक ब्राह्मण मुख्यरूप से वर्णित है32 । ठाकुर परिवारों का
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