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दृष्टा भी प्रतीत होता है, जैसे जल में प्रतिबिम्बित चन्द्रमा जल के हिलने से चलायमान और स्थिर होने से शान्त प्रतीत होता है ।
ब्रम्हासूत्र तथा सांख्य सूत्र के सदृश योगदर्शन के भी प्रथम चार सूत्र योग दर्शन की चतुःसूत्री हैं, जिनमें सारा योग दर्शन सामान्य रूप से बतला दिया है। शेष सब सूत्र इन्हीं की विशेष व्याख्यारुप हैं । 2 साहानपाद दूसरे पाद में विक्षिप्त चित्त वाले मध्यम अधिकारियों के लिए योग का साधन बतलाया गया हैं ।
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सर्वबन्धनों और दुःखों के मूल कारण पाँच क्लेश है- अविद्या, अस्मिता राग, द्वेष और अभिनिवेश ।
अविद्या- अनित्य में नित्य, अशुद्ध में शुद्ध दुःख ने सुख, अनात्मा में आत्मा समझना अविद्या है। इस अविद्यारूपी क्षेत्र में ही अन्य चारो क्लेश उत्पन्न होते हैं ।
अस्मिता-इस अविद्या के कारण जड़ चित्त और चेतन पुरुष चिति में भेद ज्ञान नही रहता। यह अविद्या से उत्पन्न हुआ चित्त और चिति में अविवेक अस्मिता क्लेश कहलाता है ।
राग-चित्त और चिति मे विवेक न रहने से जडतत्व में सुख की वासना उत्पन्न होती | अस्मिता क्लेश से उत्पन्न हुई चित्त में सुख की इस वासना का नाम राग है 1
द्वेष इस राग से सुख में विघ्न पड़ने पर दुःख के संस्कार उत्पन्न होते हैं । राग से उत्पन्न हुए दुःख के संस्कारो का नाम द्वेष है ।
अभिनिवेश दुःख पाने के भय से भौतिक शरीर को बचाये रखने की वासना उत्पन्न होती है: इसका नाम अभिनिवेश क्लेश है ।
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