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________________ ब्रह्मसूत्र में व्यास देव जी ने जहाँ दूसरे आचार्यो के मत को दिखलाकर अपना सिद्धान्त बतलाया है, वहाँ अपने को बादरायण नाम से बोधन किया है । इस दर्शन के अनुसर __(1) 'हेय'-त्याज्य जो दुःख है उसका मूल जड़तत्त्व है अर्थात् दुख जड़तत्त्व का धर्म है (2) 'हेय हेतु'-त्याज्य जो दुख है उसका कारण अज्ञान अर्थात् जडतत्व में आत्मतत्व का अध्यास अर्थात् जड़तत्व को भूल से चेतन तत्व मान लेता है। चारों अन्तःकरण मन, बुद्धि, चित्त, अहङ्कार और इन्द्रियों तथा शरीर में अहंमभाव और उनके विषय में ममत्व पैदा कर लेना ही दुःखों में फाँसना है (3) ‘हान'-दुख के नितान्त आभाव की अवस्था ‘स्वरूप स्थिति अर्थात् जडत्व से अपने को सर्वथा भिन्न करके निर्विकार निर्लेप शुद्ध परमात्मा स्वरूप में अवस्थित होना है। (4) ‘हानोपाय'-स्वरूप-स्थिति का उपाय परमात्मतत्व का ज्ञान है, जहाँ दुःख अज्ञान, भ्रम आदि लेशमात्र भी नहीं है, और जो पूर्ण ज्ञान और शक्ति का भण्डार है। वेदान्तदर्शन का प्रथम सूत्र है 'अथातो ब्रह्मजिज्ञासा'426 अब ब्रह्म के विषय में विचार आरम्भ होता है। दूसरा सूत्र है जन्माद्यस्य यत:427 इस जगत की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय जिससे होती है अर्थात जो जगत् की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय का निमित्त कारण है, वह ब्रह्म है'। जैसा की श्रुति कहती है ( 150)
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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