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सर्वज्ञतादि स्पष्ट हैं । दूसरे में उन पर विचार है, जिनमें ब्रह्म का चिन्ह स्पष्ट है और तात्पर्य उपासना में है। तीसरे में उनपर विचार है, जिनमें ब्रह्म का चिन्ह स्पष्ट हैं, और तात्पर्य ज्ञान में है। चौथे में संदिग्ध पदों पर विचार है ।
(2) दूसरे सोपान का नाम अविरोध है, क्योंकि इसमें इस दर्शन के विषय का तर्क से श्रुतियों का परस्पर अविरोध दिखाया गया है। इसके पहले पाद में इस दर्शन के विषय का स्मृति और तर्क से अविरोध; दूसरे में विरोधी तर्कों के दोष, तीसरे में पंच महाभूत के वाक्यों का परस्पर अविरोध, और चौथे में लिङ्ग शरीर-विषयक वाक्यों का परस्पर अविरोध दिखाया गया है ।
(3) तीसरे सोपान का नाम साधन है; क्योंकि इसमें विद्या के साधनों का निर्णय किया गया है। इसके पहले पाद में मुक्ति से नीचे के फलों में त्रुटि दिखलाकर उनसे वैराग्य; दूसरे में जीव और ईश्वर में भेद दिखलाकर ईश्वर को जीव के लिए फलदाता होना; तीसरे में उपासना का स्वरूप और चौथे पाद में ब्रह्मदर्शन के बहिरंङ्ग तथा अन्तरङ्ग साधनों का वर्णन है ।
(4) चौथे सोपान में विद्या के फल का निर्णय दिखलाया है। इसके पहले पाद में जीवनमुक्ति, दूसरे में मृत्यु; तीसरे में उत्तरगति और चौथे में ब्रह्मप्राप्ति और ब्रहमलोक का वर्णन है ।
अधिकरण-पादों में जिन-जिन अवान्तर विषयों पर विचार किया गया है उनका नाम अधिकरण है ।
अधिकरणों के विषय में अधिकरणों में निम्नलिखित विषयों पर विचार किया गया है1. ईश्वर 2. प्रकृति, 3. जीवात्मा, 4. पुनर्जन्म, 5. मरने के पीछे की अवस्थाऍ, 6. कर्म, 7. उपासना, 8. ज्ञान, 9. बन्ध, 10. मोक्ष ।
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