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________________ __ (ख)-प्रायश्चित कर्म-जो विहि कर्म के न करने अथवा विधिविरुद्ध के करने या वर्जित कर्म करने से अन्त:करण पर मलिन संस्कार पड़ जाते हैं, उनके धोने के लिए किये जांय कर्मा का फल भोगना ही पड़ेगा, तथा प्रतिषिद्ध कर्मो का आचरण अशुभ कल करेगा ही। अतः इनमें निवृत्ति वांच्छनीय है, परन्तु नित्य और नैमित्तिक का अनुष्ठान नितान्त आवश्यक है। अत: काम्य और निषिद्ध कर्मों से निवृत्ति परन्तु प्रायश्चित तथा नित्य और नैमित्तिक कर्मो में प्रवृत्ति मोक्ष की साहिका है। ___ उपासनाकाण्ड-वेद मन्त्रों में बतलायी हुई लवलीनता अर्थात् मन की वृत्तियों को सव ओर से हटाकर केवल एक लक्ष्य पर ठहराने की शिक्षा का नाम उपासना है। ज्ञानकाण्ड-इसी प्रकार वेद मन्त्रों में जहाँ-जहाँ आत्मा तथा परमात्मा के स्वरूप का वर्णन है, उसकों ज्ञान काण्ड कहते हैं। मन्त्रों के कर्म काण्ड का विस्तार पूर्वक वर्णन मुख्यतया ब्राह्मण ग्रन्थों में, ज्ञान काण्ड का आरण्यकों तथा उपनिषदों में और उपासना काण्ड का दोनों में किया गया है। मीमांसा-इन तीनों काण्डों के वेदार्थ विषयक विचारको मीमांसा कहते हैं। मीमांसा शब्द ‘मान ज्ञाने' से जिज्ञासा अर्थ में 'माने जिज्ञासामाम्' वार्तिक की सहायता से निष्पन्न होता है। मीमांसा के दो भेद हैं-पूर्वमीमांसा और उत्तर मीमांसा पूर्वमीमांसा में कर्मकाण्ड और उत्तर मीमांसा में ज्ञानकाण्ड पर विचार किया गया है। उपासना दोनों में सम्मिलित है। इस प्रकार के दोनों दर्शन वास्त्व में एक ही ग्रन्थ के दो भाग कहे जा सकते हैं। पूर्व मीमांसा श्री व्यासदेव के शिष्य जैमिनी मुनि ने प्रवृत्त मार्गी ग्रहस्थों तथा कर्म-काण्डियों के लिए बनायी है। उसका प्रसिद्ध नाम मीमांसादर्शन है। इसको जैमिनि दर्शन भी कहते हैं। इसके बारह अध्याय हैं, जो मुख्यतया कर्मकाण्ड से सम्बन्ध रखते हैं। उत्तरमीमांसा निवृत्ति मार्ग वाले ज्ञानियों तथा संन्यासियों के लिये श्री व्यास महाराज ने ( 146 ) ..
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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