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किये हैं-सरागी और विरागी देवता। सर्वज्ञ देव के अतिरिक्त अन्य सभी देवताओं को उन्होंने सरागी कहा है, जो पूजन, अर्चन एवं भक्ति से प्रसन्न होकर धनापि फल प्रदान करते है तथा भक्ति न करने पर रूष्ट हो जाते है ।218 जैन कथाओं में उल्लिखित हिन्दू देव-परिवार इस प्रकार
(1) देवताः अरविन्द, अरविन्दनाथ, आदित्य, गजेन्द्र, गणाधिप, गोविन्द, त्रिदशेन्द्र, नागेन्द्र, नारायण, पुरन्दर, प्रजापति, बलदेव, महाकाल, रवि, सूय, रुद्र, रेवन्तक, महाभैरव, विनायक, स्कन्द, स्वामीकुमार, शंकर, शशिशेखर, हर, हरि ।
(2) गौण देवताः किन्नर, किंपुरूष, गन्धर्व, नाग, महोरग, यक्ष, लोकपाल, व्यन्तर, सिद्ध, राक्षस, भूत, पिशाच, वेताल।
(3) देवियाः अम्बा, कात्यायनी, कुट्टजा, चण्डिका, जोगिनी, दुर्गा, माता, दिधि, लक्ष्मी, सावित्री, श्री, ही, सप्त-मातृकाएँ, पन्थदेवी,19 जातापहारिणी, पूतना, सकुनी220 विजया, अपराजिता जयन्ती, कुमारी, अम्बाला, समराइच्चकहा में कथा के प्रसंगो मे विद्या देवी221 और कहीं शारदा222 का उल्लेख आया है जिन्हे सरस्वती से अभिज्ञानित किया जाता है। सरस्वती का प्राचीनतम उल्लेख वैदिक काल से ही प्राप्त होता है। ऋग्वेद में अनेक स्थानों पर सरस्वती का उल्लेख नदी के रूप में किया गया है। 223 ऋग्वेद में उल्लिखत सरस्वती नदी के तट पर उच्चकोटि की बैदिक संस्कृति का विकास हुआ था। इसी नदी के तट पर बैठकर वैदिक कालीन ऋषि-मुनियों ने वेदों की रचना की। कालान्तर में इसी देवी का रूप मिला और पुन: यह वाणी
और ज्ञान की देवी के रूप में मानी जाने लगी ।224 सुशीला रवरे ने प्राचीन साक्ष्यों के आधार पर सरस्वती की उत्पत्ति ब्रह्माण्ड सरोवर से बतायी है ।225 वैदिक काल में तो सरस्वती को नदी के रूप में स्वीकृत किया गया है; किन्तु उत्तर वैदिक काल में इन्हें उत्तरोत्तर वाणी की देवी के रूप में स्वीकृत किया जाने लगा। शतपथ ब्राह्मण 226 तथा ऐतरेय ब्राहम्ण227 में स्पष्ट
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