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में विद्याधरों के नामों का उल्लेख है। उनके स्वामी को विद्याधरों का राजा कहा गया है ।204 एक अन्य जैन ग्रन्थ अंगविज्जा में भी विद्या धर को देवताओं की श्रेणी मे गिनाया गया है ।205 रघुवंश मे राजा दिलीप के त्याग और भक्ति के ऊपर प्रसन्न होकर विद्याधरों द्वारा उनके ऊपर पुष्प-वृष्टि किये जाने का उल्लेख है ।206 कथा सरित्सागर में विद्याधरों का उल्लेख कईवार किया गया है। समशइच्च कहा की ही भाँति इस ग्रन्थ में भी विद्याधरों के राजा207 तथा उनकी सैन्य शक्ति 208 का उल्लेख है जिसके बल पर वे नगर में शासन करते थे। कथा सरित्सागर की व्याख्या करते हुए पिंजर का विचार है कि प्राचीन भारत में कुछ लोग जादुई शक्ति प्राप्त करने के लिए सन्यस्त जीवन विताते थे, जिस शक्ति को प्राप्त कर लेने पर उसका प्रयोग अच्छे उद्देश्यों के लिए करते थे ।209
व्यन्तर देव हरिभद्र ने समराइच्च कहा में प्रत्यक्ष देव को कभी वानमन्तर 210 और कमी व्यन्तर सुर-11 कह कर सम्बोधित किया है। सम्भवतः ये दोनो नाम एक ही देवता को सम्बोधित करते हैं। तन्त्र-मन्त्र की सिद्धि द्वारा इन्हे भी कुछ अलौकिक शक्ति प्राप्त थी जिसका कभी-कभी दुरू पयोग करते थे।212 भगवान् ‘जिनके' सत्कार में इन देवताओं को विशिष्टता प्राप्त थी।213 निशीथ चूर्णी में भी बानमन्तर देव 214 का उल्लेख किया गया है जिन्हे यज्ञ गुहयक आदि की श्रेणी में गिना जाता था। अनेक अवसरों पर वामनन्तर देव को प्रसन्न करने के लिए प्रात; दोपहर और सन्ध्या के समय पटह बजाया जाता था।215 बृहत्कल्पभाष्य में वामनन्तर देव की पूजा का उल्लेख किया गया है।216 नया मकान बनकर तैयार होने पर वामनन्तरी की पूजा की जाती थी।217
हिन्दू देव मण्डल कुवलयमाला में अनेक देवी देवताओं के उल्लेख विभिन्न प्रसंगो में प्राप्त होते हैं, जो इस बात के प्रमाण हैं कि जैन कथाकार अपने समय के धार्मिक जीवन से पूर्ण परिचित ही नहीं अपितु सूक्ष्मदृष्टा भी थे। इन्होने ऐसे अनेक देवी-देवताओं का उल्लेख किया है, जो भारत के विभिन्न स्थानो पर पूजे जाते थे। इस देवपरिवार के कवि ने दो भेद
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