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रूप से सरस्वती को वाक् की अधिष्ठातृ देवी बताया गया है। सम्भवतः उत्तर वैदिक काल में क्रमश: सरस्वती को, जिन्हें ज्ञान की अधिष्ठातृ देवी के रूप में माना जाने लगा था।
लक्ष्मी:-प्राचीन भारतीय देवी-देवताओं की मान्यता के आधार पर चण्डिका, सरस्वती आदि के साथ ही लक्ष्मी की भी अलौलिक शक्ति में विश्वास किया जाता था। समराइच्च कहा में लक्ष्मी228 का उल्लेख तो है किन्तु उनके स्वरूप आदि पर विशेष प्रकाश नही पउता है। श्री तथा लक्ष्मी का उल्लेख ऋग्वेद229 में भी हुआ है किन्तु वहाँ भी उनके स्वरूप के बारे में कुछ भी स्पष्ट विवरण नहीं है। ऋग्वेद में एक स्थान पर मात अदिति23) का उल्लेख है। यजुर्वेद में वैदिक देवी अदिति को विष्णु की पत्नी के रूप में दिखाया गया है ।231 ऋग्वेद में उन्हें जगन्माता, सर्वप्रदाता तथा प्रकृति की अधिष्ठात्री देवी कहाँ गया है ।232 इन उल्लेखो के आधार पर लक्ष्मी को माता अदिति से भी जोड़ा जा सकता है। तैत्तिरीय उपनिषद में लक्ष्मी को वस्त्र, भोजन, पेय, धन आदि की प्रदात्री के रूप में बताया गया है ।233 ऐतरेय ब्राह्मण में "श्री" की कामना करने लिए विल्व के पेड़ का यूप शाखा सहित बनाने का उल्लेख मिलता है ।234 बिल्व को श्रीफल कहा गया है ।235 रामायण में श्री कुबेर के साथ सम्बन्धित बतायी गयी है, जो सांसारिक सुख एवं दुख की देवी है ।236 रामायण में एक अन्य स्थान पर लक्षमी को पुष्पक प्रासाद पर कर में कमल लिये हुए दिखाया गया है ।237 महाभारत में लक्षमी की उत्पत्ति समुद्र मंथन से बताई गई जिसका मांगलिक चिन्ह मकर माना गया है ।238 बौद्ध ग्रन्थ दीर्घनिकाय के ब्रह्मजाल सूत्र में लक्ष्मी की उपासना वर्णित है ।239 धम्मपद अट्ठकथा240 में लक्षमी को 'रज्जसिरी दायक' अर्थात् राजा को राज्य दिलाने वाली देवी कहा गया है। जैन ग्रन्थ अंगविज्जा में लक्ष्मी को "श्री" के रूप में उल्लिखित किया गया है ।241 कालदास ने रघुवंश में लक्ष्मी को राज्य के रूप में उल्लिखित किया गया है ।242 मालविकाग्नि मित्र में कावि ने नायिक की उपमा लक्षमी से की है।243 विष्णु पुराण में 'श्री' की उत्पत्ति समुद्र मंथन से कहकर उन्हें विष्णु की पत्नी बताया गया है।244 एक अन्य स्थान पर इन्हें कमलालया कहा गया है।245
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