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________________ अजैनों को जैन दीक्षा ' (१२) मारवाड़ के राठौर राजा रायपाल से श्रोसवालों के मुंहणोत गोत्र की उत्पत्ति है। उनके मूल पुरुप सप्तसेन जैनधर्म में दीक्षित हुये थे। तब ओसवालों ने उनको अपने में मिला लिया था। (१३) ओसवालों में भण्डारी गोत्र है । भण्डारियों के मूल पुरुप नाडोल के चौहान राजा लखनसी थे । यशोधर सूरि ने इनके पुत्र दादराव को सन् ६E में जैनधर्म की दीक्षा दी थी। तब से यह लोग ओसवालों में शामिल कर लिये गये। (१४) वौद्धों के 'मिलिन्द पन्ह' नामक ग्रंथसे प्रगट है कि ५०० योङ्का (यूनानियों) ने भगवान महावीरस्वामी की शरण ली थी और उनके राजा मेनेन्डर (मिलिन्द) ने जैनधर्म की दीक्षा ली थी। (१५) उपाली नामक एक नाई भगवान महावीर स्वागी का अनन्य भक्त था। (१६) अथर्व वेद से प्रगट है कि अनार्य नात्यों को जैनधर्म में दीक्षित किया गया था। (१७) हिन्दुओं के 'पद्मपुराण' के प्राचीन उद्धरण में दयावान चाण्डाल व शूद्र को ब्राह्मणवत् बतलाकर एक दिगम्बर जैन मुनि होना लिखा है। (१८) पञ्चतन्त्र के मणिभद्र सेठ वाले आख्यान से विदित है कि एक नाई के यहां दिगम्बर जैनमुनि आहार के लिये पहुंचे थे (१६) जिनभूतवलि प्राचार्य की कृपा से हम आज जिनवाणी के दर्शन कर रहे हैं वे शक जाति के विदेशी राजा नरवाहन या नहपान थे। (२०) बुल्हर साल्ने सन् १८७६ में अहमदाबाद में जैनों द्वारा कुछ मुसलमानों को शुद्ध करके जैनधर्म में दीक्षित होते हुये अपनी
SR No.010259
Book TitleJain Dharm ki Udarta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1936
Total Pages119
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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