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जैनधर्म की उदारता
कामताप्रसादजी ने अपनी 'विशाल जैनसंघ' नामक पुस्तक में कुछ ऐसे उदाहरण संग्रहीत किये हैं, जिनसे ज्ञात होता है कि जैनधर्म की पाचनशक्ति कितनी तीव्र है । वह सभी जाति के सभी मानवों को अपने में मिला सकता है। थोड़े से उदाहरण दिये जाते हैं ।
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संवत ११९७६ में श्री जिनवल्लभ सूरि ने 'पडिहार' जाति के राजपूत राजा को जैन बना कर महाजन वंश में शामिल किया था । उसका दीवान जो कायस्थ था वह भी जैनी होकर महाजन ( श्रेष्ठ वैश्य-श्रावक ) हुआ था ।
(२) खीची राजपूत . जो धाड़ा मारते थे जैनी हुये थे । (३) जिनभद्रसूरि ने राठौर वंशी राजपूतों को जैनी बनाया था । (४) सं० १९६७ में परमार वंशी क्षत्री भी जैनी हुये थे । (५) सं० १९९६ में जिनदत्तसूरि ने एक यदुवंशी राजा को जैनी बनाया था, जो मांस मदिरा खाता था ।
(६) सं० १९६५ में जिनवल्लभ सूरि ने सोलंकी राजपूत राजा को जैनी बनाया था ।
(७) सं० ११६८ में भाटी राजपूत राजा जैनी हुआ था । (८) सं० १९८१ में २४ जातियां चौहानों की जैनी हुई थीं । (६) सं० ११६७ में सोनीगरा जाति का राजपूत राजा जैनधर्म में दीक्षित हुआ था ।
(१०) इसके वहुत पहले ओसिया ग्राम के राजपूत राजा अपनी प्रजा सहित जैनी हुये थे । वही लोग 'ओसवाल' के नाम से प्रसिद्ध हुये ।
(११) पन्द्रहवीं शताब्दी में चौहान सामन्तसिंह के वंशजों में एक बच्छसिंह हुए, जो जैनधर्म के भक्त हो गये थे । उन्हीं के वंशज आजकल 'वच्छावत' जैन हैं ।