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जनधम की उदारता armerammarrammaamanmmmmmmmmmmmm.immirmwarenmmmmm. आंखों से देखा था और उनने लिखा है कि अभी तक माली छीपी आदि जातियों को जैनधर्म ग्रहण करने का द्वार बन्द नहीं है।
(२१) दक्षिण भारत में एक दिगम्बराचार्य ने कुरुम्ब और भार जैसी असभ्य जातियों को जैनधर्म में दीक्षित किया था । कुरुम्ब लोग शिकारी और मांस भक्षी थे। वही जैन हुए और फिर उनने बड़े बड़े जैन मन्दिर वनवाये थे।
(२२) पणि (पर्णि) जाति के विदेशी व्यापारी ने महावीर स्वामी के निकट मुनि दीक्षा ली और वह अन्तःकृत केवली हुआ।
(२३) भविष्यदत्त विदेशी (समुद्र पार की) कन्या को व्याह, कर लाये थे और वह बाद में आर्यिका हो गई थी। . .
(२४) यति नयनसुखदास कृत 'अंठारह नाते की कथा' में जैन दीक्षा की उदारता स्पष्ट प्रगट है । धनपति सेठ मधुसेना वेश्या से फंसा था। उससे कुवेरदत्त और कुवेरदत्ता नामक दो सन्ताने पैदा हुई । वेश्यागामी व्यभिचारी धनपति सेठ ने मुनि दीक्षा ली
और अन्त में कर्म काट मोक्ष गया । कुवेरदत्त और कुवेरदत्ता (भाई-बहिन) का आपस में विवाह हो गया । अन्त में विरक्त होकर वेश्यापुत्री कुवेरदत्ता ने क्षुल्लिका की दीक्षा लेली। कुवेरदत्त अपनी माता मधुसेना से फंस गया और उससे एक लड़का हुआ। बाद में कुवेरदत्त और वेश्या मधुसेना ने मुनिराज के पास दीक्षा . ली। इस कथा से स्पष्ट सिद्ध है कि जैनधर्म वेश्याओं को, उनकी सन्तानों को और घोर व्यभिचारियों को भी दीक्षा देकर उन्हें मोक्ष-' गामी बना सकता है।