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७६ . जनधम की उदारता
.mihaririramin सकता है ? अर्थात् उसका वहिष्कार नहीं करना चाहिये।
उपेक्षायां तु जायेत तत्वाद्र्रतरो नरः ।. ततस्तस्य भवो दीर्घः समयोऽपि च हीयते ॥..... अर्थात्-जाति वहिष्कार करने पर मनुष्य तत्व से सिद्धान्त से दूर हो जाता है। और इसलिये उसका संसार बढ़ता रहता है तथा धर्म की भी हानि होती है। ........
इस प्रकार जांति बहिष्कार को समाज तथा धर्म की हानि करने वाला बताया है। इस ओर पंचायतों को दण्ड विधान में सुधार करना चाहिये। तभी पंचायती सजा. कायम रहेगी और तभी धर्म तथा समाज की रक्षा होगी। राजा महावल की कथा से मालूम होता है कि कैसी भी. पतित स्थिति में पहुंचने पर भी मनुष्य सदा के लिये पतित या धर्म का अनधिकारी नहीं हो जाता किन्तु उसे बाद में उतना ही धर्माधिकार रहता है. जितना कि. किसी धर्मात्मा और शुद्ध कहे जाने वाले,श्रावक को। उस कथा का भाव यह है कि- ........... . राजपुत्र महाबल ने कनकलता. नाम की राजपुत्री से संभोग किया । वह बात सर्वत्र फैल गई। फिर भी उन दोनों ने मिलकर मुनि गुप्तनामक मुनिराज को आहार दिया और फिर वे दोनों "दूसरे भव में राजकुमार राजकुमारी हुये । यह कथा उत्तरपुराण. • 'पर्व ७५ में देखिये..... बहिस्थितः कुमारोऽसौ कन्यायामतिशक्तिमान् । ... ..... तयोर्योगोऽभवत्कामावस्थामसहमानयोः॥८६॥... . . .मुनिगुप्ताभिधं वीक्ष्य भक्त्या भिक्षागवेषिणं । ...
प्रत्यत्थाय परीत्याभि बंद्याभ्यर्च्य यथाविधि ।। १०॥