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वैवाहिक उदारता rnwww..xx.mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmwww.m या बड़े कुल वाले को उसके गुण पर मुग्ध होकर विवाह लेती थी उसे कोई बरा नहीं कहता था। हरिवंश पुराण में इस सम्बन्ध में स्पष्ट लिखा है कि___कन्या वृणीते रुचिरं स्वयंवरगता वरं ।
कुलीनमकुलीनंवा क्रमो नास्ति स्वयम्बरे ॥११-७१॥
अर्थात् स्वयम्बरगत कन्या अपने पसन्द वर को स्वीकार करती है, चाहे वह कुलीन हो या अकुलीन । कारण कि स्वयम्बर में कुलीनता अकुलीनता का कोई नियम नहीं होता है।
अव विचार करिये, कि जहां कुलीन अकुलीन का विचार न । करके इतनी वैवाहिक उदारता बताई गई है वहां अन्तर्जातीयविवाह
तो कौनसी बड़ी बात है। इसमें तो एक ही जाति, एक ही धर्म, और एक ही आचार विचार वालोंसे संबंध करना है। यह विश्वास रखिये कि जब तक वैवाहिक उदारता पुनः चालू नहीं होगी तबतक जैन समाज की उन्नति होना कठिन ही नहीं किन्तु असंभव है। । जैन शास्त्रों में विजातीय विवाह के प्रमाण ।
१-राजा श्रेणिक (क्षत्रिय) ने ब्राह्मण कन्या नन्दश्रीसे विवाह किया था और उससे अभयकुमार पुत्र उत्पन्न हुवा था। (भवतो विप्रकन्यां सुतोऽभूदभयाह्वयः) चाद में विजातीय माता पिता से उत्पन्न अभयकुमार मोक्ष गया । (उत्तरपुराण पर्व ७४ श्लोक ४२३ से २६ तक)
२-राजा श्रेणिक (क्षत्रिय) ने अपनी पुत्री धन्यकुमार 'वैश्य' को दी थी। (पुण्याश्रव कथाकोष)
३-राजा जयसेन (क्षत्रिय) ने अपनी पुत्री पृथ्वीसुन्दरी प्रीतिकर (वैश्य) को दी थी। इनके ३६ वैश्य पत्नियां थीं और