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________________ ६४ जैनकथा रत्नकोष नाग चोथो. ना पण सर्व पुजल क्ष्य करतां मात्र बेहला पुजल क्ष्य करवाने उजमाल थको चरमपुजल वेदनरूप क्योपशमनो हलो समय तेने वेदक समकेत कहीयें. पांचमा सास्वादननुं स्वरूप कहे :-नपशम समकेतर्नु वमन कर, ते सास्वादन कहीये. उपशम समकेतथी पडतो सास्वादनने फरसे. हवे ए पांचे समकेतनी स्थितिमानादिक कहे जेः-उपशमनो काल अं तरमुहूर्तनो, साश्वादननो काल आवलिकानो, वेदकनो काल एक सम यनो, दायिक समकेतनो तेत्रीश सागरोपम जाजेरा अने दायोपशम स मकेतनो काल बासठ सागरोपम प्रमाण जाणवो. सास्वादन अने उपशम, एबे समकेत उत्कृष्ट पणे आवे तो जीवने पांच वार आवे. अने वेदक तथा दायिक ए बे एकज वार आवे तेम वली छायोपशम असंख्यातीवार यावे तथा प्रथम मूक्यो तेनुं वली ग्रह ण करईं तेने आकर्ष कहिये ते एक नव आश्रयी तो श्रुतसमकेतीने उल्लष्टा एक सहस्त्र पृथक आकर्ष होय अने देशविर तिने एकशो पृथक आकर्ष होय तथा जघन्यथी तो सर्वने एकज आकर्ष होय, सास्वादन समकेत बीजे गुणठाणेज होय तथा नमशम समकेत चोथा गुणवाणाथी मामीने अग्यारमा गुणगाणासुधीना आठ गुग्गठाणे होय अ ने वेदक तथा क्योपशम एबे समकेतने चोथाथी सातमा सुधीना चार गु णगणां होय,तथा दायिकने चोथाथी चौदमासुधी अग्यार गुणगाणां होय. ___ समकेत पाम्या पनी उत्कृष्टथी नव पव्योपमें श्रावकपणुं पामे, तथा सर्व विरति नपराम, दयोपशमने असंख्याता सागरोपमना थांतरा होय. __ अप्रतिपाति सम्यग्दृष्टिने देवनव अथवा मनुष्यनवने विषे एक श्रेणि वर्जितने जेणे श्रेणि न करी होय ते सात अथवा आठ नवमां मोदे जाय. तथा दायिक समकेत वालो त्रीजे नवें अथवा चोथे नवें अथवा तेहीज नवें मोदें जाय,ते समकेत देवता, नारकी अने संख्यासंख्याता वर्षायुवाला चरम शरीरी मनुष्यने होय, तिहां जेणे सातप्रकृति क्य कस्यानी पूर्वेज घायु बां ध्यु होय,ते देवगति अथवा नरकगति प्रत्ये जश्ने तिहाथी मनुष्य था मो दें जाय तो त्रीजे नवें सिदि पामे,अने कदापि कोश्ये तिर्यच मनुष्यनुं था यु बांध्युं होय ते अवश्य असंख्याता वर्षायु वाला युगलीयामां जइ उपजे पण संख्याता वर्षना बाउखावालामां न उपजे. पड़ी ते युगलिया मरी
SR No.010249
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages477
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size63 MB
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