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जैनकथा रत्नकोष नाग चोथो. कयतिपुंजी, मिडविय उवसमिए ॥ १॥ नावार्थः- आलंबन अण पा मती एवी इलिका जेम पोतानुं स्थानक न मूके, तेम जेणे त्रणपुंज कस्या नथी एवो जेउपशम समकेती जीव ते पाडो मिथ्यात्वे जाय पोतानुं स्थानक मूके नहीं ॥ १ ॥ प्रथम समकित पामेथके कोक समकित साथेंज देश विरति अथवा सर्वविरति अंगीकार करे . ते शतकनामें पांचमां कर्मग्रंथनी वृहत् चूर्णीने विपे कह्यं ॥ गाथाः-उचसमसम्मबिहि,अंतरकरणे निजी। को॥ देसविरईपि सप्त, कोपमत्तोपमत्त नापि ॥ सासायणो पुणनकि पि सहाति पुत्रय संक्रमणं कल्पनाष्ये नक्तं ॥ ___ मिथ्यात्व पुद्गलना दलियां लेइने समकित दृष्टि जीव प्रवईमान परि पामे समकेत पुंजमां तथा मिश्र पुंजमां संक्रमावे, अने मिश्रना पुजल ल इसमकेतमा संक्रमावे. तथा मिथ्यादृष्टि जीव समकेतना पुजल लइ मिथ्या त्वमा संक्रमावे, पण मिश्रमां संक्रमावे नही.
मिथ्यात्व क्षीण कसा विना सम्यगदृष्टि नियमा त्रिपुंजी होय अने मि थ्यात्व वीणे हिजी होय, मिश्र की एक पुंजी होय, समकेत मोहिनी दय थये थके दायिक समकेती थाय. मीणाला कोदरानी कल्पनायें स मकेतना पुजल शोधेला होय तेने विरोधि तैलादिक व्यतुल्य एवा कुती र्थीना संसर्गथी कुशास्त्र सांजलवारूप मिथ्यात्वें करीने मिश्रित थया थ का तेहिज हणने विषे मिथ्यात्वपणुं थाय, तथा समकितथी पड्योथको वली समकित पामे, तेवारें अपूर्वनी पेठे अपूर्व करणे त्रण पुंज करी, अ निवृत्ति करणे करी,सम्यक्त्वना पुंजने विषे जाय. तेवारें पूर्व पाम्युं जे अपू वकरण तेनोज लान थाय, तेथी एने शी रीते अपूर्वपणुं कहीयें ? एवीशं काना निवारण माटे कहे , के अपूर्वनी पेरें अपूर्व थोडी वारज पामे. माटें अपूर्वज कहीयें एम वृक्ष पुरुषो कहे :
तथा सिक्षांतने मतें तो समकेत पाम्यानी पेठे जेवारें देशविरति अथ वा सर्वविरतिपणुं पामे, तेवारे पण यथाप्रवृत्तिकरण अने अपूर्वकरण करे, पण अनिवृत्तिकरण न करे अपूर्वकरणनो काल संपूर्ण थये तेना अनंतर स मयेंज देशविरति अथवा सर्वविरतिनो लान थाय. देशविरति सर्वविरति पा मवा अनंतर अंतर्मुहूर्न यावत् अवश्य कोक जीव प्रवर्धमान परिणामे चो चडे, तेने उपर चडवानो नियम नथी तिहां कोश्क वधते परिणामें व