________________ 462 जैनकथा रत्नकोष नाग चोथो. शोने नहीं, कहु वेला कुण गाय // 17 // गुरुजी वस्ती नहीं // दान वात जाणे नहीं, देरा हार न जाय // तप कस्यो निरर्थक गयो, कदु चेला कुण गाय // 17 // गुरुजी नाव नहीं // सजान लागे उर्जना, मात पि ता न सुहाय // घरत्रीया रूती फिरे, कदु चेला कुण नाय // 15 // गुरु जी हेत नहीं // दीवे पतंग पी करे, परणि प्रदेशां जाय // अणघटता करे घणा, कदु चेला कुण ताय // 20 // गुरुजी लानें // बते पलंगे नुई सुए, घडो बलक्यो जाय // बते मगले टाढें मरे, कदु चेला कुरा गय // 21 // गुरुजी नस्यो नहीं // मोटै सहर वशे नहीं, काया खीज था य // अड्यो दल्न पाटो हटे, कदु चेला कुण ठाय // 22 // गुरुजी राजा नहीं // घोडो तो दूर्बल थयो, चाकर रूठो जाय // निलुक तो नूंमो वदे, कदु चेला कुण नाय // 13 // गुरुजी पाम्यो नहीं // निज त्रीया अडु ए फिरे, परव ज कोरां जाय // मोटा सुत वांढा फिरे, कदु चेला कुण गय // 24 // गुरुजी संपति नहीं // खेतर चोरें नेलियो, गामे चोरी था य // नाकि दाण आवे नहीं, कदु चेला कुण गय // 25 // गुरुजी चो की नहीं // हाथ चूडि शोने नहीं, अमलह चढा न थाय // प्राण्यो के र खपे नहीं, कहु चेला कुंण नाय // 26 // गुरुजी रंग नहीं // आंबो तो खाटो लगे, गुंबडे पीडा थाय // नखो घडो फाटी गयो, कटु चेला कुणताय // 27 // गुरुजी पाको नहीं // गाये पण शोने नहीं, कृवे नीर न थाय // नवमो ग्रह शोने नहीं, कदु चेला कुण नाय // 28 // गुरुजी सीर नहीं // झाडें फल नवि नीपजे, त्रीया गर्न न थाय // वाडि नली शोने नहीं, कदु चेला कुण गय // 25 // गुरुजी फूल नहीं // घर खर च वाध्यां घणां, वेपार लान न थाय // लेणुं पालुं जडे नहीं, कदु चेला कुण ठाय // 30 // गुरुजी अविचास्यां घणां करे // हारें तालुं न घडे, मं त्र सिदि नवि थाय // दीवि वस्तु थाये नहीं, कहु चेला कुण गेय // 31 // गुरुजी कुंची नहीं // नारि नेत्र शोने नहीं, अदर फिका जवाय // घडा उमाट शोने नहीं, कहु चेला कुण गय // 32 // गुरुजी शाम नहीं / // इति गुरुशिष्य बत्रीशी समाप्त //