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३७४ जैनकथा रनकोष नाग चोयो. करी धर्मानुष्ठान करवू जेथकी जीव गुनगतिनां आउखां बांधे इति ॥ __ वली पंचमीने पर्वपणुं श्रीमहानिशीथमध्ये कह्यु डे यतः ॥ संते बल वीरिय पुरिस्सकार परक्कमे अहमी चउदसी पाणपंचमी पङोसवणो चन मासिएसु चग्न असम बहिकरिता पायबित्तमिति ॥ नावार्थः-बते बलें, बते वीर्ये, उते पुरुषाकार पराकमें, अष्टमी, चतुर्दशी, ज्ञानपंचमी,पंजोसण मां चोमालियें एटले तेकाणे, चोथ 6 अमेकरीने प्रायश्चित तप करवू. त था निशीथचूर्णिमांहे पण कह्यु के “पुस्लिमाए दसमीए एवमाईएसु पत्वेसु प द्योसो अवं न अपव्वेसुत्ति ॥ नावार्थः-पुर्णिमा पंचमी दशमी ए आदे देने पर्वना दिवसोनेविषे तपस्या करवी पण पर्व विना तप न करवू त था एकोनविंशति पंचाशकवृत्यादिक अनेक ग्रंथनेविपे पंचमी कही .
एम बतां त्रिपर्वी, चतुःपर्वी, पंचपर्वी, षट्पर्वीने तप शीलादिकेंकरी अाराधवी कही पोतानी शक्ति होय तो सर्वे वेदु पखवाडीयानी तिथि श्रा राधवी अथवा एक पखवाडियानी पण बाराधवी अथवा महोटी तिथि
पण आराधवी परंतु विराधवी नही शक्ति होय तो सर्वदा आराधन क रतां कोई दोष नथी. __ वली शिष्य पूजे के चन्दस अहम नदिक पुलिमासणिएमु पडिपुर पोसह अणुपालेमाणे विहर एम कडं जे. तेनो गुरु उत्तर कहे जे के श्री सूयगडांगमांहे श्रावकना वर्णनने अधिकारे चतुर्दशी अष्टमी, ए तिथि तो प्रसिह पण नदिशासु एवो जे पाठ ले ते तो श्रीतीर्थकरनी महोटी कट्या णिकतिथि दे तेणेंकरी पुण्य तिथिपणे वे अने पूर्णिमातोत्रण चोमासानी त्रण पुनमने माटे विख्यात वे एटलामाटे कही ने तथा श्रीजगवतीनी टी कामध्ये नदिहा तिथिने अमावास्या कही ने तेथी अष्टम्यादिक पर्वने विषे ज पोषध करवो पण शेष दिवसने विषे न करवो एम न कहेवु एवो कांश एकांत नथी कारणके बीजा सुबादुकुमारादिक तथा परमेश्वरना दश श्राव के तिथिविना पण पोसह कस्या के तेने ना कही नथी जेमाटे श्रीविपाक सूत्रना बीजा श्रुतस्कंधना प्रथम अध्ययननेविषे कह्यु ले "तेएणंसे सुबाहु कुमारे अन्नयाकयाई चाउदसम्मुदित पुस्लिमासणिएसु जावपोसहसालाए पोसहिए अमनत्तिए पोसह पडिजागरमाणे विहरहत्ति ॥ नावार्थः-तेवा रे ते सुबादुकुमार अन्यदा कोश्वारें चतुर्दशी अष्टमी अमावस्या पूर्णिमा