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________________ अर्थदीपिका, अर्थ तथा कथा सहित. ३६३ कंकण, धनदना घरनी आगल मूकीने पोते जीतने उथें बाना उपी रह्या. एवामां पोताना माणसोनी साथें धनद पण आव्यो ते पोताना घरनी आगल कंकण पडेलु देखीने विस्मय पामतो बोल्यो के अरे जू जून आ कोक, बाजरण पडीगडे ने तेने महोटा धननी हानि थइ हो. इत्यादि क वचन कहेतो पोते ते कंकणने प्रत्यक्ष अनर्थ जेवं मानवा लाग्यो त्यारे तेनी पासे रहेला माह्या एवा मित्र तथा माणसोयें युक्तियें करी तेने घणो समजाव्यो के थाटलो पोकार म करो अने आ आनरण घरमा राखो तो पण ते धनद साधुनी पेठे चलायमान न थतां ते कंकणने पबरना कट कानी पेरें गणतोथको अणयहतो पोताना घरमांहे गयो. जेमाटे तेहतुं जण्यु, तेनुं गण्यु, तेनुं जाणपणुं, के जेनो आत्मा अत्यंत आकरी आपदा मां पज्यो होय तो पण कोना आमंत्रणथकी अकार्य करे नहीं. __ एवं ते धनदनुं स्वरूप सर्व जाणीने राजाना सुनटोये जश्ने राजानी बागल ते वात कही, ते सांनली राजायें आश्चर्य पामीने बीजे दिवसें घ गा आदर सहित धनदने तेडावीने पूज्यु के हे धनद ! तुं तदारुं यथार्थ स्वरूप सर्व मने कहे. के वाणीया कांगणीनो हिसाब गणवाने निपुण था य एक कांगणीने लोनें घणां कूड कपट बल नेद करें ले तथा विश्वास घात पण करे ने तेम बतां आ बहुमूल्यवालुं कंकण ते वली सहेज स्व जावें रस्तामां पडेलुं हतुं ते तें शामाटे न लीधुं ? झुं तहारे पडली वस्तु ले वाना पञ्चरकाण दे के तुजने कांश महारी शंका उपनी के मुं? एबुं राजानुं वचन सांजलीने धनद बोल्यो, हे राजन् ! मने पारकुं धन लेवानो नियम पण नथी तेम तमारी शंका पण न हती परंतु पारकुं व्य लेवाथी मूलगुं पोतानुं व्य होय ते पण तेनी साथे सर्व जाय तेमज वली पारकुं इव्य लेवं ते प्रत्यक्ष अन्याय के अने जे उत्तम जीव होय ते अ न्याय तो करेज नहीं जो अन्याय करे तेवारे तो ते हलका माणसनी पं क्तिमां गणवा लायक कुष्ट कहेवाय. माटे में महारा जन्मथी मामीने या ज दिवससुधी पारकुं इव्य लेवारूप पाप सेव्यु नयी तो वत्ती आज ते पापy केम सेवन करूं; वली जे सुपुरुष नाम धरावतो होय, अने सुपुरुप पणाने तो होय ते पुरुष अन्याय केम करे ? एवं धनदनुं बोलवू सांजली राजायें विचाखु जे अहो एनी उत्तमता
SR No.010249
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages477
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size63 MB
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