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________________ अर्थदीपिका, अर्थ तथा कथा सहित. ३६१ ज, ३७ प्रनानाथ, ३० चंप्रन, ३ए अशोक, १० वीतशोक, ४१ अप राजित, ४२ गंगोदक, ४३ कौस्तुन, ४४ कर्कोट, ४५ पुलक, ४६ सौगं धिक, ४७ सुनग, ४७ धृतिकर, ४ए सौनाग्यकर, ५० पुष्टिकर, ५१ ज्यो तिरस, ५२ श्वेतरुचि, ५३ गुणमाली, ५४ हंसमाली, ५५ अंशुमाली, ५६ देवानंद, ५७ वीरतैल, ५७ स्फाटिक, एए सर्पमणि, ६० चिंतामणि. ए साठ जातिनां रत्न हमणां प्रसिभ . . हवे आत्रण रत्नमाहे जे पहेलृ रत्न तेमांहे कलुषता ने ए उत्पत्ति ने समये कादवपाणीमांहे उपन्युं ने माटे मांहे मोहोर्बु पाणी . वली बीजु रत्न तो नुत्पत्तिना समयनेविषे देमकीना पुटनी पेरें , जेम देमकी कचरापाणीना संयोगथी संमूर्बिम उपजे ने तेम ए पण एमज नपन्युं ले तेटला माटे मांहे असार अने बाहेरथी सारूं दीवामां आवे ने तेमाटे जो लगारमात्र अथडायतो फूटे अने थोडोकाल टकी शके अने ज्यांसुधी न अथडाय त्यांसुधी आईने आq कायम रहे एवीरीतें ए वेदु रत्न दाडि मना पाका फलनी पेरें तरत फूटे तेथी ए बे रत्ननुं विशेष मूल्य कांइ नथी अने यात्रीगँ रत्न जे जे ते तो दिव्यरत्न सर रत्न . ए रत्ननो अतिश य प्रनाव ले आ रत्न जेनी पासें होय ते पुरुषने व्यंतर राक्स इत्यादिक ना माठा नपश्व थाय नही. समुश्मध्ये रह्याथी जलजंतुनो नपश्व थाय नही तथा कोढ, उष्ट ज्वर, उष्ट नगंदरादिक अनेक जातिना रोग नाश पामे. तथा जेम सऊनना समागमथकी शोक जाय तेम आ रत्नना संयोगथ की सर्व नपश्व टली जाय तथा वली ए रत्न जो पासें होय तो अत्यंत आकरा विषना नपश्व ते परानव करी शके नही जेम बकतर पहेतूं हो य तेने घा लागे नही तेनी पेठे विप परानव न करे तथा रणसंग्रामनेवि षे एक क्षणमात्र पण कोइ तेना मुख आगल टकी शके नही. तथा जेम ग्रहपतिना मुख आगल ग्रहनु कांश्चाले नही तेम तेने सामा जो वैरीना समू ह होय तो पण गुं थयुं ? तेमाटे ए रत्न अमूल्य के एनुं मूल्यज थाय नही. ए वातनुं प्रत्यक्ष पार जो होय तो एक थाल कमोदना चोखाथी जरीने चोकनी वच्चे मूको अने शालिना अपनाग नपरें वचमां ए रत्न मूको पड़ी वेगला जर बेसो जेवारें सूडादिक पंखी नूरख्या थका शालि खा वाने अर्थे दिशादिशाथी पावशे तेवारें कोइ ए थालने इकडो आवी श
SR No.010249
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages477
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size63 MB
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