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________________ अर्थदीपिका, अर्थ तथा कथा सदित. २३ नपणे कुतीर्थने विषे जq आवद्यु, थयुं होय, तिहां पंचेंश्यिना वधना हेतु नो पण संनव ने माटे सर्वनावें करीश्रावकोने त्यां जq निषि करेलुं .तथा राजादिकना अनियोगपणाथी स्वनियम खंमनादिक थाय तथा नियोग शेठ मंत्रियादिकनी पदवी मले थके जवू पडे,ते दर्शनना अतिचार, शेप आला वो पूर्वपरें जाणवो. एमझानातिचार याश्रयी पाबली गाथायें व्याख्या करी. तथा दर्शनातिचार आश्रयीपण.सामान्यपणे व्याख्या कही ॥ इति ॥ ५ ॥ हवे समकेतना पांच अतिचार पडिक्कमवाने गाथा कहे :संका कंख विगिना, पसंस तह संथवो कुलिंगीसु ॥ संमत्तसईयारे, पडिक्कमे देसियं सत्वं ॥ ६ ॥ अर्थः-एक धर्मने विषे शंका राखवी, बीजो कांदा ते अपरधर्मने विषे अनिलापा करवी, त्रीजो धर्मना फलनो संदेह राखवो ते वितिगिबा, चोथो मिथ्यात्वीनी प्रशंसा करवी, (तह के०) तथा पांचमो कुलिंगी मिथ्यात्वीनो संस्तव ते परिचय करवो, ए समकेतना पांच अतिचारने पडिक्कमुंडं. दि वससंबंधि इत्यादि पूर्ववत्. तिहां दर्शनमोहनीय कर्मना दयोपशम थकी उदय पाम्यो जे आत्मपरिणाम तेथी वीतरागें कह्या जे जीवादिक तत्त्व तेनी नपर शुक्ष्क्षानरूप जे आत्मानो गुन परिणाम तेने समकेत कहीयें. सिमपंचाशिकासूत्रवृत्ति, तथा सिप्रानृतत्ति, धर्मरत्नवृत्ति, कर्म ग्रंथसूत्रवृत्ति, दिनकतवृत्ति आदिक अनेक ग्रंथोमां कडं जे. तथा पूज्यश्री देवेंसरियें कडं वे ॥ जिय अजिय पुष्मपावा, सवसंवर बंध मुरक निकर णा ॥जे ण सदह तयं, सम्मं खगाइबदुनेयं ॥ १ ॥ अंम्यत्रापि ॥ जीवा ३ नवपयजे, जो जाण तस्स होइ सम्मत्तं ॥ नावेण सदहंतो, अयाण मा णेवि सम्मत्तं ॥ तथा त्रण.तत्त्वना अध्यवसाय ते समकेत कहियें ॥ उक्तं च ॥ अरिहं देवो गुरुणो, सुसादुणो जिणमयं मह पमाणं ॥श्चाइ सुह जावो, सम्मत्तं बिति जगगुरुणो ॥ १॥ नावार्थः-देव श्रीअरिहंत, गुरु सुसाधु, धर्म ते श्रीजिनेश्वर नगवानप्ररूपित. ए त्रण तत्त्व मुझने प्रमाण जे, इत्यादिक गुजनाव होय तेने जगतना गुरु समकेत कहे . समकेत ते श्रीवीतरागना धर्मनु मूलनूत ने, जेमाटे सुविहेणं तिविहेणं इत्यादि नांगे अंगीकार करवे करीने श्रावकना बार व्रत ते समकेतादिक
SR No.010249
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages477
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size63 MB
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