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अर्थदीपिका, अर्थ तथा कथा सहित. ३२७ रोगादिकें पीड्यो थको पंचत्व पाम्यो त्यारे कुमर,शेठना घरनो मालेक थयो.
हवे वीरसेनकुमर कुसुमश्रीनी शुदिने अर्थ व्यापारनो मिश करीने देशां तरें चाल्यो तिहां एकदेश मूकी बीजे देश जाय एम देशे देश नगरे नगर जमतां जमतां जेम नव्य जीव जव अटवी जमतां जमतां अगण्य पुण्येक रीने वांबित सुखने आपनार एवा मनुष्यना नवने पामे तेम वीरसेन कुम र पण श्रीपुरनगरने पाम्यो. तिहां श्रीपुरनगरमा पेसतांज वीरसेनकुमरने शुकन घणां श्रीकार थयां. तेथी जेम कोइ महारोगें पीडेला, मरणने निक ट एदा रोगी पुरुपने, कोई पुरुष कहे के हुँ तहारा रोगनुं निवारण करीने तने दीर्घायुवालो करीश तेथी तेने जीववानी आशा थाय तेम ते वीरसेन कुमरने कुसुमश्री मलवानी अाशा थइ. ___ हवे ते कुमर श्रीपुरनगरमां नत्सुक थको कोइएक व्यवहारियानी पहेडी नपर बेसीने कोइएक पुरुपने नगरनुं स्वरूप पूबतो हवो तेवारे ते पुरुष क हेतो हवो के ा नगरनो नयसार नामे राजा के वली शुभ व्यापारना कर नारा अनेक व्यवहारिया पण एमां घणा वसे में वली हमणां आ नगरने विषे पुफा नामा वेश्याने घेर सादात रति सरखी कोई युवान स्त्री आवी रही बे ते एकरात्रिना पांचशे ने शोल सोनैया लीये डे परंतु सर्वने नाटकादिक दे रवाडी प्रनात थाय एटले काहाढी मूके ने पण हजी सुधी कोई तेनुं मुख जोवा पाम्यो नथी तो तेना संगनीतो वातज शीकरवी. फोकटना सोनैया बूटी पडे एवं अद्भुत कौतुक आ नगरमां हमणां चाले ने ते दी जणाय. __ ए वात सांजलीने वीरसेन कुमार विचारे ये जे एतो कुसुमश्रीज हशे पण जोयाथी निर्णय थाय वली वेश्याने घेर रही ने एवं सांजलवाथी संशय पण पडे डे के कुसुमश्री ते एवी केम होय ? वली पण अंग स्फुरवायो निर्णय कयो के कुसुमश्री आज क्यांइक मलवी जोश्यें. केम के मस्तक फरके तो राज्य मले, नुजा फरके तो वाहाला मले, नेत्र फरके तो जरि माने, अ घर फरके तो प्रियसंगम थाय, गनस्थल फरके तो स्त्रीनो लान करे, कान फरके तो शोजन शब्द संनलावे, नेत्रना खुणा फरके तो धननोलान था य, उष्ठ फरके तो पराजय थाय, पीठ फरके तो पराजय थाय, खंनो फर के तथा कंत फरके तो लोग मने, हाथ फरके तो लान तथा विजय थाय, हृदय तथा नासिका फरके तो प्रीति नपजे, स्तन फरके तो जान करे, ह