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अर्थदीपिका, अर्थ तथा कथा सहित.
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जे जीवोना शरीरथकी धनुष नीपन्युं बे तेना जीवने केम तं क्रिया लागे ! ने जो अचेतन कायामात्रना संबंधथकीज क्रिया लागे एवं कहेशो, ते वारें तो सिद्धना जीवने पण ते क्रियानो प्रसंग याशे जेमाटे तेनी काया पण प्राणातिपातादिकनो हेतु याय बे.
हवे गुरु उत्तर कहे बे के ते धनुपादिक जे जीवोना शरीरथी नीपन्यां ते जीवोयें पोताना शरीरने वोसराव्युं नथी ते कारण माटे तेमना शरी रथी यती पापक्रिया ते जीवोने चाली यावे ते.
तेवारें शिष्य बोल्यो के जो पापक्रिया चाली खावे ने तो पुष्यक्रिया पण चाली याववी जोइयें. शामाटे जे ए चेतनना शरीरनां पुजलमांथी धर्मो पकरण जे पात्रमादिक बे ते जो बने तो तेवां सर्व उपकरण जीवरक्षा नां हेतु या ते पुण्य क्रिया सर्व जीवने चाली याववी जोइयें.
हवे गुरु उत्तर कहे बेः-के हे शिष्य ! सांनव्य चेतननें जे पापबंध याय ते विरतिना परिणामथकी थाय बे ने ते अविरति चेतननुं शरी र े ते शरीरने चेतने वोसराव्युं नथी ने सिद्धना जीवने क्रिया लाग ती नयी केमके ते जीवोयें कर्मबंधना हेतु सर्वे खपावी नाख्या वे माटे ते मने कोई क्रिया लागे नही वली पुण्यतो तेवारें बंधाय के जेवारे पुण्यबंध ना हेतु होय तेवारें वंधाय, ते पुण्यबंधना हेतुतो जेना शरीरथी धनुष नी पन्युं ने ते जीवोने से नहीं. केमके ते विवेकशून्य बे तेमाटे पुण्य बंधाय नही पढ़ी तो श्रीवीतराग वचनथी जेम होय तेम सदहवं.
ए जीवने संसारमां परिभ्रमण करतां ए जीवनां शरीर स्थानकें स्थान के मूकाणां ते शरीरोमांथी शस्त्रादिक नीपन्यां अथवा जीव पोतेंज जीव तां तां स्थान स्थानकें नवां नवां विविध व्यधिकरण करीने मूकतो ग यो एम जे जे नवनेविषे मूक्यां ते ते नवनां अधिकरानी तथा शरीरनां शस्त्रादिनी क्रिया ते सर्व, चेतनने चाली यावे . चेतननां शरीर तथा अधिकरण की जेटलो जीवोनो वध थाय ते सर्व चेतन जे वखत जे जव मां होय ते जवमां तेने पापकर्मनो बंध चाल्यो आवे छे. तेटलामाटे विवे की जीवें अंत अवस्थायें शरीर तथा अधिकरण सर्व वोसराववां. वली विवेकी जीव पोताने निघणा दिवादिक बलता होय तेने कार्य थ रह्यापी न उलवे तो तेपण प्रमादाचरित अनर्थदं कहेवाय.
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