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श६ जैनकथा रत्नकोप नाग चोथो. वधामणी दीधी जे हे महाराज! पूर्व दिशानुं वन सर्वक्रतुनां फल,फूल,पांदडां, धान्य, वनस्पतियें करी सर्व फव्युं फूल्यु ने ते एवं गीच थइ गर्यु ले के मांहे सूर्यना किरणो पण प्रवेशकरी शकता नथी अने पूर्वदिशाये सुगाल थयो . एम चारदिशाना वनपालकोये प्रावी सुनिदनी वधामणी आपी. तेमज देत्रोना अधिपतियोयें आवी राजाने कह्यु के महाराज! देवने विपे धान्य बदु नीपज्यु डे एमज खनाना स्वामीयोयें कडं के खलामां धान्यना ढगला थइ पड्या ने एमज जलनां स्थानक जे कूप, वाव्यो, नदी, इह, सरोवर, त लाव,प्रमुखना रखवाला प्रमुख, सदुकोइहर्पनर थका यावी आवीने कहेवा लाग्या के जलने स्थानकें अखूट जलनराऽ गयां जे. एम बीजा गामडांना तथा नगरना लोको सर्वे साथे एकेकालें आवीने राजाने वीनवता हवा.
ते सांनतीने राजाने तथा सर्वे लोकोने अतिशय अक्ष्तिीय एवो आ नंदनो रस प्राप्त थतो हवो. जे कोइथी कह्यो जाय नही. तेम रोग योग पण सर्व एक जवारें जतो हवो सर्वलोकने कोई अपूर्व अतिशय शीतलता थती हवी सर्व हर्ष पाम्या थका सर्वने जीवदानी आशा था तेथी सर्व लोक अहितीय महोत्सव करवा लाग्या एवं समृधिसुख प्राप्त अयुं. तेना कारणनी कोइने खवर पडी नही.
ए अकस्मात् सुखनुं कारण ते राजा प्रजा सर्व एम समजवा जाग्यां के आपणा सदुना नाग्योदय यो थयु जे. एनो बीजो कोइ हेतु नथी. वली नगरना तपस्वी कहेवा लाग्या के अमारी तपस्याना प्रनावथी सद्ध लोक सुखी थया. केटलाएक कहेवा लाग्या जे अमे धर्म करीयें बैये तेना प्रनावथी सर्वने सुख थयु. एमज ध्यानकरनारा ध्यानना प्रनावथी, योगीश्वर पोता ना योगना माहात्म्ययी, मंत्रवादी मंत्र जापना महिमाथी, तथा देवदेवी योना सेवको पोतानां देवदेवीनां अाराधनथी, जोशियो ग्रहनी पूजाथी, एम सर्वको पारवंमी पोतपोतामा अनिमान धरता थका राजा आगल आवी आवीने कहेता हवा के था अमारा अमुक कर्त्तव्यना माहात्म्यथी सर्वलोकोने सुख ययुं . ते सांनली राजाये सर्वने कह्यु के तमे सर्व बोलो बो तेमां कोण साचं अने कोण जुटुं ने ढुंतो तमो सर्वेने जुठा मार्नु ..
पड़ी एवातनो राजाना चित्तमा संशय उपन्यो जे कोइ झानी आवे तो संशय टले, एकदा राजाना तथा प्रजाना नाग्योदयथा वेत्रीयें आवीने क