________________
अर्थदीपिका, अर्थ तथा कया सहित. न्य हावाथी खावाने अयोग्य थयां. तेमज कूवा, तलाव, वावडी अने नदी प्रमुखनां पाणी पण सर्व फेरनूत थ गया. तेथी लोक अने जनावर प्र मुख कृय पामवा लाग्यां एम सर्व लोक अाकुल व्याकुल थयां कारण के जेवारें दुष्काल पडे ले तेवारें तो लोक तथा ढोर प्रमुख वनफल तथा फू ल पांदडां कंदमूलादिक खाइ पाणी पीने काल काढे अने जीवतां रहे पण
आहीं तो पाणी सुधां सर्व फेरनूत थश्गयां अने जे खाय के पिये ते म रण पामे तेथी कोइ जीववानो नपाय रह्यो नही.
एम घणालोको तथा जनावरोनो दय थतो देखीने ते वखत जे पुण्य वान गृहस्थ हता ते सर्व लोकनी तथा ढोरनी अने परवी प्रमुखनी ख बर राखवा लाग्या. घर माहेला टांकानां तथा कूवानां पाणी अने घास चूणो प्रमुख के जे घरमां हतां जेनी नपर वर्षादनो बांटो नही पड्यो हतो तेवी निर्विप चीजोथी सर्व जीवोनो निनाव करवा लाग्या. एम करतां के टलोएक काल गयो पड़ी जेवारे ते दुःखे पामवा योग्य घरना टांकाप्रमु खनुं पाणी पण थइ रहेवा याव्युं तेवारें तृपायें पीडायेला लोको ते फल फूलादिक तथा विपमिश्रित पुष्ट जलने पीवा लाग्या के तरतज ज्वर कुष्ट कास श्वास चमादिकना रोगथी मरण पामवा लाग्या.
एम घणा लोकोनो संहार थतो देखीने राजायें जोशी, निमितिया, मंत्रवा दी, तंत्रवादी, वैद्य, नूवा, वेदीया, पुरोहित, ब्राह्मण प्रमुख सर्व पाखंमी। ने तेड्या अने तेमने राजा पूबतो हवो. तेवारे ते सर्व कहेता हवा के नवो वर्षाद थायतो कल्याण थाय बीजो कोई उपाय नथी. तेवारें राजा मंत्री प्रमुख सर्वे एकता थइ विचार करवा लाग्या पण कोइ नपाय सूजे नही. केटलाएक लोक तो गलें फांसो खाइने मरवा माटे तैयार थया जीववानी याशा बोडी दीधी एवो उपश्व वत्ताइ रह्यो. ढोर तथा माणसनो यथ वाथी जाणीय कल्पांतकाल तिहां आव्यो होयनी ? एम दीसवा लाग्यु.
एम केटलाक दिवस गयानंतर एकदा प्रनातकालनेविषे राजसनामां राजा, प्रधान, सामंत, वागीया, पटाउत, सेनाउत, सेनापति, प्रमुख सर्व वेग . एवामां पूर्व दिशानो वनपाल हर्षनर अावीने सिंहधारें उनो रह्यो बडीदारे जश्ने राजाने कझुके स्वामी! पूर्व दिशानो वनपाल आव्यो बे तेने शी आज्ञा . राजायें मांहे आववानी आज्ञा दीधी के वनपालकें यावी