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अर्थदीपिका, अर्थ तथा कथा सहित. ३ शूडीजवति ब्राह्मणः वीरविक्रयात् ॥१७॥ मांसमां लाखमां लवणमां जीव तरत पडे तथा तेना विक्रयथी ब्राह्मण पण त्रय दिवसमां शूर थाय ने अने मांस मदिरा लाख तथा लवण वेचवाथी ब्राह्मण तरतज पतित थाय जे. ____ रसवाणिज्यमां मधुनेविषे अनेक जीवोनी हिंसा थाय ने वली ए मां अनेक संमूर्बिम जीव उपजे तथा मरण पामे उग्धादिकनेविपे पडेला जीवोनी विराधना थाय तथा वे दिवसनी नपरांत दहीने विपे संमूर्बिम जीवो उपजे तेनी युक्ति पूर्व कही . __ए केशवाणिज्यनेविपे विपद चतुष्पद जीवोने नित्य परवश पणे राख वाना दोष तथा ते जीवोने वध बंधन दुधा तृपादिकनी वेदना जोगववी पडे इत्यादि दोप थाय .
१० विपवाणिज्यमां शिंगडी वत्सनाग, हरताल, सोमलवारादिक वि प अने सर्व शस्त्रादिकने विपे जीव हिंसा प्रत्यद देखाय पाणीमां पला खेली हरतालने विपे मदिकादिक जीव मरण पामे ने, सोमल खाधाथी वालकादिक जीव मरण पामे ॥ नक्तंच ॥ कन्या विक्रयिणश्चैव रसविक यिणस्तथा ॥ विपविक्रयिणश्चैवनरानरकगामिनः ॥ कन्याविक्रय करनार, रस विक्रय करनार तथा विपविक्रय करनार ए सघला पुरुपो नरकगामी जे.
११ यंत्रपीलण कर्म तो अनेक त्रस जीवोनुं वधकारि ने. खांम, पी सवं, चुलो, पाणी राखवानुं स्थानक, वासी काढq ए पांच हिंसाश्री गृहस्थने कर्म बंधाय वली घाणी तो महोटा पापनुं हेतु एवं लौकिक शास्त्रमा पण वर्णव्यु जे जे दश कसा जेवो एक घांची, दश घांचीना जेवो एक कलाल, दश कलालना जेवी एक गणिका, तथा दश गणिका सरिखो एक राजा पातकी जाणवो. इति यंत्रपीलन कर्म.
१२ निलंबनकर्म ते गाय अश्व नंट इत्यादिक पंचेंश्यि जीवोने कदर्थ ना करवी कष्ट उपजावq ते महापापनुं हेतु बे. १३ दवदेवाथकी अनेक कोट्यावधि जीवोनी विराधना थाय.
१४ सरोवरादिकनुं शोषण करतां पाणीना जीवो तथा पाणीने आश्रि त रहेला मजकन्डपादिक अनेक जातिना त्रसजीवोनो विनाश थाय माटे एमां बकायजीवनी हाणी थाय. १५ असतीपोषे दासादिक जे पापकरे तत्संबंधि पापनी वृद्धि थाय.